Simla Agreement: पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने शिमला समझौते को लेकर विवादास्पद बयान दिया है। उन्होंने इसे मृत दस्तावेज करार दिया है।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने 1972 के भारत पाक शिमला समझौते को लेकर विवादित ब्यान दिया है। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री का यह ब्यान हाल ही में पहलगाम हमले के बाद भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और POK में आतंकी ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई के बाद आया है।
पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि 1972 का शिमला समझौता अब पूरी तरह से खत्म हो चूका है। अब इस समझौते को मृत दस्तावेज माना जाएगा।
उनका दावा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा स्थिति 1948 जैसी बन गई है। उस समय संयुक्त राष्ट्र नियंत्रण रेखा को ‘युद्धविराम रेखा’ के रूप में नामित किया था।
पाकिस्तान के रक्षामंत्री ने कहा कि अब एलओसी को शिमला समझौते के तहत स्थापित सीमा के रुप में नहीं बल्कि 1948 की युद्धविराम रेखा के रूप में देखा जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान इसे अब अस्थाई रेखा मानता है।
आसिफ ने कहा कि शिमला समझौता (Simla Agreement) खत्म होने बाद अब पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय बातचीत की बजाय बहुपक्षीय और अंतराष्ट्रीय मंचों पर उठाने के लिए स्वतंत्र है।
ख्वाजा का यह ब्यान भारत के उस रुख के खिलाफ है, जिसमें भारत कश्मीर को अपना आंतरिक मामला मानता है। भारत हमेशा ही इस मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता से हल करना चाहता है।
आसिफ ने कहा कि अगर पकिस्तान पर युद्ध थोपा गया तो पकिस्तान किसी भी हद तक जा सकता है।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें ज़्यादातर पर्यटक थे। लश्कर-ए-तैयबा के एक छद्म विंग द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने हमले की ज़िम्मेदारी ली थी।
जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकवादी ठिकानों पर सटीक सैन्य हमले किए। जिसमें जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के ठिकाने नष्ट कर दिए गए।
क्या है शिमला समझौता
शिमला समझौता, जिस पर 2 जुलाई 1972 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किये थे, 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
इस समझौते का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से विवादों को सुलझाने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना था।
इसके तहत, 1947 के युद्ध के बाद तैयार की गई युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा (एलओसी) के रूप में मान्यता दी गई तथा दोनों पक्षों ने इसे एकतरफा रूप से बदलने से बचने का वादा किया।
भारत का फायदा
आसिफ के बयान से भारत को शिमला समझौते के खत्म होने के बाद चंब क्षेत्र और पीओके पर अपना दावा फिर से जताने का मौका मिल सकता है। चंब क्षेत्र, जिसका नाम पाकिस्तान ने इफ्तिखाराबाद रखा है, रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है।
आसिफ के बयान और युद्ध की धमकी से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ सकता है। खास तौर पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव पहले से ही चरम पर है।
शिमला समझौते और ख्वाजा आसिफ के बयान पर भारत सरकार की स्थिति स्पष्ट है। भारत कश्मीर को अपना आंतरिक मामला मानता है। आतंकवाद के प्रति भारत की शून्य सहनशीलता की नीति है।
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