NIA Court Pragya Thakur: 2008 मलगेगांव ब्लास्ट मामले में मुंबई की विशेष NIA कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है।
NIA Court ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में प्रज्ञा ठाकुर को बरी किया
मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने 2008 मालेगांव ब्लास्ट मामले में बीजेपी नेत्री साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत सात आरोपियों को सबूतों के आभाव में बरी कर दिया है। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में विफल रहा। सबूतों के आभाव में आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया। कोर्ट ने उल्लेख किया कि यह साबित नहीं हो पाया कि विस्फोट में प्रयुक्त मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की थी। न ही यह साबित हो पाया कि विस्फोटक सामग्री कर्नल पुरोहित के घर पर रखी गई थी।
मालेगांव विस्फोट मामले पर फैसला
31 जुलाई, 2025 को मुंबई की एक विशेष एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) अदालत ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में साधवी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित और पांच अन्य आरोपियों- सुधाकर द्विवेदी, अजय राहिरकर, राकेश धावड़े, रमेश उपाध्याय और समीर कुलकर्णी को बरी कर दिया।
न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने सुनाया फैसला
विशेष NIA Court के न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में विफल रहा, इसलिए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर रखे बम में विस्फोट हुआ। इस हमले में छह लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा घायल हुए। यह विस्फोट नासिक ज़िले के मालेगांव में भिक्कू चौक के पास हुआ था।
शुरुआत में महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने जाँच की थी, जिसने दावा किया था कि यह हमला हिंदू दक्षिणपंथी समूहों द्वारा किया गया था। प्रज्ञा ठाकुर पर विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल का मालिक होने का आरोप लगाया गया था।
पुरोहित और अन्य पर विस्फोटक सामग्री की आपूर्ति और साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप दर्ज किए गए थे।
2011 में मालेगांव ब्लास्ट मामले को NIA को सौंप दिया गया था, जिसने अपनी जांच में कुछ नए पहलुओं को शामिल किया।
आरोपियों के बरी होने के कारण
- अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि विस्फोट में प्रयुक्त मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की थी। मोटसाइकिल के स्वामित्व को लेकर कोई ठोस सबूत पेश नहीं हो सका।
- लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के आवास पर विस्फोटक सामग्री होने का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला।
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों को लागू करने के लिए आवश्यक स्वीकृति आदेश गलत पाए गए। इसलिए, इन धाराओं के तहत मुकदमा चलाना संभव नहीं था।
- अभियोजन पक्ष ने 323 गवाह पेश किए थे, लेकिन कई गवाह अपने बयानों से मुकर गए और उनके बयानों में विरोधाभास पाया गया। इससे अभियोजन पक्ष का मामला और कमज़ोर हो गया।
- अदालत ने कहा कि जब अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को साबित करने में विफल रहता है तो आरोपी को संदेह का लाभ देना कानून का मूल सिद्धांत है।
मामले के अन्य प्रमुक बिंदु
- यह मामला 17 साल तक चला, जिसमें अभियोजन पक्ष के 37 गवाहों और 13,736 पृष्ठों के दस्तावेज़ों से पूछताछ की गई। मुकदमे के दौरान लगभग 323 गवाहों के बयान दर्ज किए गए।
- भोपाल से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वर्तमान सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने फैसले का स्वागत करते हुए इसे “सत्यमेव जयते” का उदाहरण बताया। उन्होंने दावा किया कि यह मामला उन्हें और अन्य आरोपियों को फंसाने की “कांग्रेसी साजिश” थी।
- पुरोहित ने भी इस फैसले को सत्य की जीत बताया और कहा कि यह उनके लिए न्याय का क्षण है।
इन सवालों का जवाब नहीं
मालेगांव विस्फोट मामला भारत के सबसे चर्चित और विवादास्पद आतंकी मामलों में से एक रहा है। इस फैसले ने एक लंबी कानूनी लड़ाई का अंत तो कर दिया, लेकिन यह सवाल भी छोड़ गया कि हमले के असली गुनहगार कौन थे।
अदालत ने स्पष्ट किया कि सबूतों के अभाव में किसी को भी दोषी ठहराना संभव नहीं है। इस मामले को भारतीय जाँच एजेंसियों और न्याय व्यवस्था के लिए एक अहम सबक के तौर पर देखा जा रहा है।