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BSF से बर्ख़ास्त जवान तेज बहादुर यादव ने चुनाव आयोग द्वारा नामांकन रद्द करने वाले फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

मई 6, 2019 | by

Jawan Tej Bahadur Yadav, who was dismissed from BSF, challenged the decision of the Election Commission to cancel his nomination in the Supreme Court.

बीएसएफ के पूर्व जवान तेज बहादुर यादव ने चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से उनका नामांकन समाजवादी पार्टी के टिकट पर खारिज कर दिया गया था , जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से चुनाव लड़ रहे हैं।

सरकारी सेवा से बर्खास्त किये जाने से जुड़ा है मामला खाद्य गुणवत्ता के बारे में कथित रूप से झूठी शिकायतें करने के लिए वर्ष 2017 में सेवा से बर्खास्त किए गए यादव ने 29 (twenty nine)अप्रैल को समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया था। इसे 1 मई को रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसे 19 (nineteen) अप्रैल, 2017 को सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। और इस तरह की बर्खास्तगी की तारीख से five साल की अवधि खत्म ना होने के कारण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9(nine) का संदर्भ में समाप्त नहीं हुआ था।

रिटर्निंग ऑफिसर ने यह भी देखा कि, “नामांकन पत्र में निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित तरीके से जारी किया गया प्रमाण पत्र नहीं है कि उसे भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के लिए बर्खास्त नहीं किया गया है।” यादव की याचिका में किया गया दावा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32(thirty) two के तहत दायर याचिका में यादव ने कहा है कि उन्होंने नामांकन पत्र के साथ अपनी बर्खास्तगी का आदेश प्रस्तुत किया था जिससे पता चलता है कि उन्हें कथित अनुशासनहीनता के लिए बर्खास्त किया गया था न कि भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के लिए।

उनका तर्क है कि उनका मामला 1951 अधिनियम की धारा 9(nine) द्वारा कवर नहीं होता और इसलिए 1951 के अधिनियम की धारा 33(thirty three) (3) के तहत चुनाव आयोग द्वारा जारी किए जाने वाले प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। “प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए नहीं था समय” इसके अलावा उन्होंने शिकायत की है कि प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं था क्योंकि 30(thirty) अप्रैल को शाम 6(six) बजे उन्हें जारी हुए कारण बताओ नोटिस के बाद उन्हें अगले दिन सुबह 11(eleven) बजे तक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा गया था।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर की गई इस याचिका में यह कहा गया है कि चुनाव आयोग ने अधिनियम के तहत बिना विवेक के इस्तेमाल इस धारा के तहत उसका नामांकन खारिज कर दिया। याचिका में किया गया दावा “ऐसा लगता है कि वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र में प्रतियोगिता की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए और सत्ताधारी दल के उम्मीदवार को वॉकओवर देने के लिए याचिकाकर्ता को अयोग्य घोषित कर दिया गया है, जिसकी उम्मीदवारी गति पकड़ रही थी क्योंकि उसे राज्य के 2 प्रमुख राजनीतिक दलों के मुख्य विपक्षी गठबंधन का समर्थन प्राप्त था,” याचिका में कहा गया है और इस फैसले को “मनमाना, गलत और दुर्भावनापूर्ण “करार दिया गया है।

रिटर्निंग अफसर पर मनमानी करने का आरोप उन्होंने कहा है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अपनी संवैधानिक शक्ति का इस्तेमाल करने में चुनाव आयोग की असफलता के मद्देनजर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सीधे यह याचिका दाखिल की है और याचिकाकर्ता को लोकसभा चुनाव से अयोग्य घोषित करने में रिटर्निंग ऑफिसर की मनमानी और दुर्भावना भी थी।

तेज़ बहादुर यादव से जुड़ा विवाद दरअसल वर्ष 2017 में यादव ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड किया था जिसमें उन्होंने शिकायत की थी कि भारत-पाकिस्तान सीमा की रखवाली करने वाले जवानों को खराब गुणवत्ता का भोजन परोसा जा रहा है। इसके कारण भारी हंगामा हुआ और उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल की जांच हुई और मीडिया में झूठी शिकायत करने के आधार पर उनकी बर्खास्तगी हुई। यादव ने शुरू में यह घोषणा की थी कि वह वाराणसी में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देंगे। बाद में समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपना समर्थन देने की घोषणा की और उन्हें अपना सपा-बसपा संयुक्त का उम्मीदवार घोषित किया था।

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