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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर कुछ रोचक बातें जो शायद आप नहीं जानते होंगे

जनवरी 23, 2020 | by pillar

Some interesting things on the birth anniversary of Netaji Subhash Chandra Bose which you might not know

आज आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है। उनका जन्म 23 जनवरी 1997 को ओडिशा के कटक में हुआ था। आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ रोचक तथ्य।

आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक थे Netaji Subhash Chandra Bose

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ( Netaji Subhash Chandra Bose) देश की आज़ादी के उन महानायकों में से एक हैं,जो हमेशा हर हिंदुस्तानी के दिल में रहेंगे। उनहोंने आज़ादी की लड़ाई के लिए अपना सबकुछ देश पर न्योछावर कर दिया था। सुभाष चंद्र बोस के जज़्बे के कारण ही उनको महात्मा गाँधी ने देश भक्तों का देश भक्त कहा था।

Netaji Subhash Chandra Bose ने देश की आज़ादी के लिए आज़ाद हिंद फ़ौज के नाम से देश का पहला सशस्त्र बल बनाया था। जिसका नारा था ,” तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा।”

उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद फ़ौज का गठन किया था। आज़ाद हिंद फ़ौज में क़रीबी 85000 सैनिक थे। इस फ़ौज में एक महिला यूनिट भी थी। जिसकी कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन थी।

Netaji Subhash Chandra Bose एक असाधारण प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने 1918 में प्रथम श्रेणी स्कोर के साथ दर्शनशास्त्र में बीए किया था। भगवद गीता सुभाष चंद्र बोस के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत थी। नेताजी के पिता जी चाहते थे कि उनका बेटा आईसीएस बने।

साल 1920 में उन्होंने अपने पिता की यह इच्छा पूरी करते हुए आईसीएस की परीक्षा चौथे स्थान से पास की। लेकिन सुभाष चंद्र बोस का मन अंग्रेजों के अधीन काम करने का नहीं था। इसी लिए उन्होंने 22 अप्रैल 1921 को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

Netaji Subhash Chandra Bose को 11 बार जेल हुई

इसके बाद उनको जलियांवाला बाग़ नर संहार ने उनको इतना विचलित कर दिया कि वे आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। अंग्रेजी हुक़ूमत का विरोध करने के कारण उनको 1921 से 1941 के बीच 11 बार जेल जाना पड़ा।लेकिन अंग्रेजी हुक़ूमत के इस ज़ुल्म के बाद भी उनके हौसले कम नहीं हुए।

1941 को उनको उनके ही घर में नज़र बंद कर दिया गया था। जहाँ से भाग निकले। नेताजी कोलकाता से कार में बैठकर गोमो के लिए निकल पड़े।उसके बाद वो पेशावर गए। पेशावर से काबुल पहुंचे और काबुल से जर्मनी के लिए हवाई जहाज़ से निकल पड़े।

जहाँ उनकी मुलाक़ात अडोल्फ हिटलर से हुई। जब हिटलर से मिल रहे तो दोनों बहुमंजिला इमारत की सीढ़ियां चढ़ते हुए बात करते चल रहे है। इसी बीच जिस भी मंज़िल पर हिटलर को अपना सिपाही दिखाई देता था ,हिटलर जंप बोल देते थे और सिपाही मंज़िल से कूद कर अपनी जान दे देता था।

असाधारण प्रतिभा के स्वामी थे Netaji Subhash Chandra Bose

इस पर नेता जी नाराज़ होते हुए बोले ,मैं तो भारत आज़ाद करवाने के लिए आपसे मदद मांगने आया हूं और आप अपने ही सैनिकों को मार रहे हैं। जिसके जवाब में हिटलर ने कहा,तुम भी अपने देश के लोगों में ऐसी देश भक्ति भावना भरो ताकि वो तुम्हारे एक इशारे से ही अपनी जान तक देने के लिए तैयार हो जाएं।

नेता जी को हिटलर की यह बात समझ आ गई और वहीँ से ही बगैर किसी मदद के वो वापिस हो लिए। इसके बाद उन्होंने आज़ाद हिंद की स्थापना की।

दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान 1942 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज का गठन किया। जिसको इंडियन नेशनल आर्मी भी कहा जाता है। इस फौज का गठन जापान में हुआ था। इस फौज की स्थापना भारत के एक क्रांतिकारी नेता रासबिहारी बोस ने टोक्यो में की थी।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सेना के गठन के लिए जापान ने बहुत मदद की थी। आज़ाद हिंद फ़ौज ने 19 मार्च 1944 को पहली बार अपना झंडा फहराया था। इस ध्वज को फहराने वालो में कर्नल शौकत अली भी शामिल थे।

इससे पहले 21 अक्टूबर 1943 को Netaji Subhash Chandra Bose ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई। जिसे जर्मनी,जापान ,कोरिया ,इटली और आय‌र‌लैंड‌ ने मान्यता दे दी थी। आज़ाद हिंद फ़ौज ने बर्मा के बार्डर पर अंग्रेजों के खिलाफ ज़ोरदार लड़ाई लड़ी थी।

Netaji Subhash Chandra Bose महात्मा गांधी जी के साथ कई बातों पर सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए सशस्त्र क्रांति की जरूरत है। 18 अगस्त 1945 को नेता सुभाष चंद्र बोस का एक विमान दुर्घटना में देहांत हो गया था। जिसके बारे में आज तक भी कुछ साफ़ नहीं हो पाया है।

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