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कोरोनावायरस के बाद ब्लैक फंगस का खतरा मंडराया,जानिए कितना खतरनाक है यह वायरस

भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर कहर बरपा रही है। कोरोनावायरस की लहर में मरीज ज्यादा गंभीर हो रहे हैं। कई मरीजों को स्टेरॉइड देखकर बचाया जा रहा है। स्टेरॉयड की हैवी डोज से कई मरीजों को ब्लैक फंगस नाम की बीमारी हो रही है।

भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर कहर बरपा रही है। कोरोनावायरस की लहर में मरीज ज्यादा गंभीर हो रहे हैं। कई मरीजों को स्टेरॉइड देखकर बचाया जा रहा है। स्टेरॉयड की हैवी डोज से कई मरीजों को ब्लैक फंगस नाम की बीमारी हो रही है।

कवीड बाद अब ब्लैक फंगस

कोविड के कारण ज्यादा गंभीर मरीजों को स्टेरॉयड देखकर बचाया जा रहा है। ऐसे स्टेरॉयड के है हैवी डोज से कई मरीजों को ये Mucormycosis यानी ब्लैक फंगस का नाम की बीमारी भी हो रही है। इस बीमारी में कुछ गंभीर मरीजों को बचाने के लिए उनकी आंखें तक निकालनी पड़ रही है। म्यूकोरमाइकोसिस नाक से शुरू होती है आंख और दिमाग तक फैलती है।

मुंबई में बीएमसी के बड़े अस्पताल शायन ने बीते 45 दिन में ब्लैक फंगस के 30 मरीज देखे हैं। जिनमें से 6 की मौत हो चुकी है और 11 की एक आंख निकालनी पड़ी। विशेषज्ञ बताते हैं कि फंगस दो-तीन दिन नाक में रहता है और फिर आंख की और बढ़ता है। ऐसे में नाक से खून निकलना देखने पर डॉक्टर से संपर्क करें। कोविड-19 के बाद अब ब्लैक फंगस इंफेक्शन की जंग भी और खतरनाक हो गई है।

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मुंबई के सायन अस्पताल में ईएनटी हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉक्टर रेणुका ने कहा कि यह जानलेवा बीमारी है। उन्होंने कहा कि 30 मरीज हमने बीते डेढ़ महीने में देखे हैं। जिनमें से 11 मरीजों की एक आंख निकालनी पड़ी है। एक 40 स साल की ,मरीज है और उनकी दोनों आंखें निकालने पड़ी। डॉक्टर रेणुका ने कहा,” इस बीमारी के 30 मरीज जो हमारे यहां हैं। उनमें से 6 को हम बचा नहीं पाए। इस बीमारी की मोटिलिटी रेट 50 फ़ीसदी की यानी 10 में से 5 मरीज नहीं बच पाते, अगर यह बीमारी शरीर में फैल जाती है।”

मुंबई की ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर आकृति देसाई ने कहा, “इस महीने में 15 से ऊपर मामले देख चुकी हूं, सहकर्मी ने 40 से ऊपर ब्लैक फंगस के केस देखे हैं। ईएनटी डॉक्टर नाक से स्कोर टेस्ट के जरिए कंफर्म करते हैं। पहले फिर एंटीफंगल इंजेक्शन देते हैं। अगर संक्रमण आंखों तक पहुंच जाता है तो सर्जरी की जरूरत पड़ती है। संक्रमण ज्यादा हुआ तो पूरी आंख निकालनी पड़ सकती है। सामान्य दिनों में यह डायबिटीक शुगर मरीज में होता था। इस से पहले इस बीमारी के बहुत कम मरीज आते थे। अब यह बीमारी कोरोना में हो रही भारी दिक्कतों की वजह से बढ़ी है।

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