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जिनको कभी नहीं हुआ कोरोनावायरस, ब्लैक फंगस की चपेट में आ गए ऐसे 32 लोग

भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर का कहर थोड़ा कम होता हुआ नजर आ रहा है। लेकिन इसी बीच ब्लैक फंगस की चपेट में बहुत लोग आ रहे हैं।

भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर का कहर थोड़ा कम होता हुआ नजर आ रहा है। लेकिन इसी बीच ब्लैक फंगस की चपेट में बहुत लोग आ रहे हैं।

कोरोनावायरस के बाद अब यह नई बीमारी बड़ा सिरदर्द बनी हुई है। लेकिन हाल ही में उससे भी अधिक डराने वाली खबर सामने आई है। दरअसल पंजाब में अब तक ब्लैक संगत के 152 से ज्यादा मरीज सामने आ चुके हैं। इनमें से 32 मरीज ऐसे हैं जिन्हें कभी भी कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ। इस बात से आम लोगों की चिंता काफी बढ़ गई है।

ब्लैक फंगस

डॉक्टरों और विशेषज्ञों के अनुसार अभी तक यही माना जा रहा था कि जिन लोगों को कोरोनावायरस ने इलाज के दौरान स्टेरॉइड ज्यादा दिए जाने की वजह से ब्लैक फंगस का संक्रमण हुआ है। लेकिन अब डॉक्टरों का कहना है कि 32 मरीज ऐसे हैं जिन्हें दूसरी बीमारियों के इलाज के दौरान स्टेरॉइड दिए गए थे। इसलिए ऐसा नहीं है कि कोरोनावायरस होने वालों में ही ब्लैक का संक्रमण बढ़ने का खतरा है।

डॉक्टर गगनदीप सिंह

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, ब्लैक फंगस के लिए पंजाब में नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए डॉक्टर गगनदीप सिंह कहते हैं कि जिस भी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, उसे यह बीमारी होने का ज्यादा खतरा है। डॉक्टर बताते हैं कि ब्लैक फंगस छूने से नहीं फैलता और अगर समय पर इसकी पहचान कर ली जाए तो इसका इलाज करना संभव है। कोई भी व्यक्ति जिसे कभी किसी बीमारी के इलाज के दौरान ज्यादा स्टेरॉइड दिए गए हैं । वह ब्लैक फंगस का शिकार बन सकता है। बता दे, पंजाब में 19 मई को महामारी अधिनियम एक्ट के तहत ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया गया था।

ब्लैक फंगस एक काफी दुर्लभ फंगल इंफेक्शन है। जो शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। इस इंफेक्शन के कारण दिमाग, फेफड़ों का गलना भी हो सकता है ।इ स बीमारी में कई लोगों की आंखों की रोशनी भी चली जाती है। वहीं कुछ मरीजों के जबड़े और नाक की हड्डी गल जाती है। अगर समय रहते इस पर काबू नहीं किया गया तो इससे मरीज की मौत भी हो सकती है। खासतौर से उन लोगों को प्रभावित करता है जो स्वास्थ्य समस्याओं के लिए दवा पर निर्भर हैं।

ब्लैक फंगस उन लोगों को अपना शिकार बनाता है जिनमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी की कमी होती है। कोरोना के दौरान या फिर ठीक हो चुके मरीजों का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर होता है। इसीलिए वह आसानी से ब्लैक  की चपेट में आ जाते हैं। जिसमें डायबिटीज और शुगर लेवल बढ़ जाने पर उन्हें में काला कवक हो सकता है।

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