Haryana News: हरियाणा सीएम नायब सैनी की सरकार तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद अल्पमत में आ गई है। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि हरियाणा में अल्पमत में आने के बाद बीजेपी सरकार ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगी।
हरियाणा में तीन जेजेपी के बाद अब तीन निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। अब 3 विधायकों के समर्थन वापस लेने का बाद अब सीएम नायब सिंह सैनी की सरकार अल्पमत में आ गई है। हरियाणा में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं और अभी 88 विधायक हैं। हरियाणा में बहुमत का आंकड़ा पार करने के लिए 45 विधायकों की जरूरत है।
बीजेपी के पास खुद के 40 विधायक हैं और 6 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। जिनमें से 3 निर्दलीय विधायकों ने मंगलवार के दिन अपना समर्थन वापस ले लिया है। अब हरियाणा बीजेपी के पास कुल 43 विधायक हैं। जबकि बहुमत के लिए 45 का आंकड़ा जरूरी है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि सीएम नायब सिंह सैनी की विदाई तय है।
इससे पहले सीएम मनोहर लाल खट्टर के समय में बीजेपी के पास कुल 56 विधायक थे और बहुमत के लिए 45 का आंकड़ा जरूरी था। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के पास बहुमत से 11 अधिक विधायक थे। एलएम खट्टर के समय में जनता जननायक पार्टी के समर्थन वापस लेने के बाद बीजेपी हरियाणा के पास 6 निर्दलीय विधायकों को मिलाकर बहुमत से एक अधिक विधायक थे। अब तीन निर्दलय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद हरियाणा सरकार पर कुल 43 विधायक हैं यानि बहुमत से 2 कम। ऐसे में मुख्यमंत्री नायब सैनी की सरकार अल्पमत में चल रही है।
जिन तीन निर्दलीय विधायकों ने हरियाणा बीजेपी से अपना समर्थन वापस लिया है, वे चरखीदादरी विधान सभा से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान, कैथल लोकसभा क्षेत्र की पुण्डरी विधानसभा सीट से विधायक रणधीर गोलन और करनाल लोक सभा क्षेत्र की नीलोखेड़ी विधान सभा सीट से विधायक धर्मपाल गोंदर हैं। इन तीनों विधायकों ने बीजेपी से अपना समर्थन वापस लेने के बाद विपक्षी पार्टी कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है। तीनों ने मंगलवार के दिन रोहतक में हरियणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा की मौजूदगी में कांग्रेस पार्टी को अपना समर्थन दिया है। राज्य सरकार के अल्पमत में आने के बाद पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा ने हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग की है।
क्या खतरे में है अल्पमत में आई नायब सिंह सैनी की सरकार ?
अल्पमत में आने के बाद फ़िलहाल अगले छह महीने तक सीएम नायब सिंह सैनी की हरियाणा सरकार पर को खतरा नजर नहीं आ रहा है। किसी भी सरकार को अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराना होता है। मीडिया में समर्थन वापसी से सरकार को अल्पमत में नहीं माना जाता। इसके लिए विपक्ष को सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाना होता है और सत्तारूढ़ दल को अपना बहुमत साबित करना होता है। ऐसे में अगर सत्तारूढ़ दल अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बहुमत साबित नहीं कर पाता है तो सरकार गिर जाती है।
हरियाणा में कांग्रेस पार्टी की तरफ से उस समय मार्च महीने में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था जब मनोहर लाल खट्टर ने सीएम पद से इस्तीफा दिया था और उनकी जगह नायब सिंह सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था। मार्च महीने में हरियाणा बीजेपी ने सदन में बहुमत सिद्ध किया था और नायब सिंह सैनी ने सीएम पद की शपथ ली थी। ऐसी में तकनीकी तौर पर बीजेपी के खिलाफ हरियाणा विधान सभा में अगले छह महीने तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
हरियाणा में विपक्षी दल कांग्रेस के पास है ये विकल्प
तकनीकी आधार पारा गले छह महीने तक किसी भी राज्य के सदन में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता। एक बार बहुमत सभी होने के 180 दिन बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। ऐसे में अब हरियाणा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पास राज्यपाल से निवेदन करने का विकल्प बचा है। अगर राज्यपाल अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं तो मुख्यमंत्री को फिर से बहुमत साबित करना होगा।
संविधान के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव
भारत के संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार, सदन का कोई भी सदस्य अगर मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है। सदस्य को अविश्वास प्रस्ताव के लिए विधान सभा अध्यक्ष को एक पत्र लिखना होगा। अगर सत्तरूढ़ दल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो संपूर्ण मंत्री परिषद को इस्तीफा देना पड़ता है।