महाशिवरात्रि के दिन जानें शुभ मुहूर्त ,पूजन सामग्री विधि और कथा

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का त्योहार मुख्य रूप से मनाया जाता है। भोले शंकर के भक्त इस अवसर पर अपने आराध्य देवता की विशेष पूजा के लिए इस दिन की प्रतीक्षा करते रहते हैं। इस दिन शिव मंदिरों में शिव लिंग पर जल दूध और बेल पत्र चढ़ा कर शिव शंकर को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन जो भी भक्त सच्चे दिल से शिव लिंग का अभिषेक करता है, उसे शिव की कृपा मिलती है। शिव शंकर को भोलेनाथ भी कहा जाता है। हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। लेकिन फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। साल के 12 महीनों में आने वाले शिवरात्रि में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

महाशिवरात्रि की तिथि और शुभ मुहूर्त के बारे में जाने।

महाशिवरात्रि की तिथि : 21 फरवरी 2020

चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 21 फरवरी 2020 को शाम 5:30 से शुरू

चतुर्थी तिथि समाप्त: 22 फरवरी 2020 को शाम 7:02 पर समाप्त हो जाएगी

रात्रि पहर की पूजा का समय: 21 फरवरी 2020 को शाम 6:41 से रात 12:52 तक का है

क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि ?

शिवरात्रि मनाए जाने की कई पौराणिक मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन शिव जी पहली बार प्रकट हुए थे। मान्यता यह है कि शिव जी अग्नि ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। जिसका ना आदि है और ना अंत है कहते हैं शिव लिंग के बारे में जानने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने उसका रूप धारण किया और उसके ऊपरी भाग तक जाने की कोशिश करने लगे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। सृष्टि पालन हार विष्णु ने भी ‘वराह’ का रूप धारण कर उस शिव लिंग का आकार ढूंढने की कोशिश की लेकिन असफल रहे।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही अलग-अलग 64 जगहों पर शिवलिंग उत्पन्न हुए थे। हालांकि इनमें में से केवल 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में जानकारी उपलब्ध है।

पूजा सामग्री : महाशिवरात्रि के व्रत से 1 दिन पहले पूजा की सामग्री एकत्रित कर ले।

जो इस प्रकार है। शमी के पत्ते, सुगंधित पुष्प, बेल पत्थर, धतूरा, भांग बेर और जौ बालें ,तुलसी, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद ,गंगा जल ,कपूर ,धूप दीप, चंदन, पांच फल , 5 मेवा, इत्र रोली मोली, पांच  मिष्ठान शिव और मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री और पूजा के बर्तन।

महाशिवरात्रि की पूजन विधि।

सुबह-सवेरे उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।

इसके बाद शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के लिए सबसे पहले तांबे के लौटे में गंगा जल ले अगर घर पर गंगा जल कम हो तो शुद्ध पानी के साथ भी गंगा जल की कुछ बूंदें मिला ले।

चावल और श्वेत चंदन मिलाएँ ओम नमः शिवाय बोलते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।

जल चढ़ाने के बाद चावल बेल पत्र सुगंधित पुष्प ,धतूरा, भांग , आम मंजरी, जौ की बालें ,तुलसी, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, पंच फल , पंचमेवा पंच रस ,इत्र मोली और पंच मिष्ठान एक-एक कर चढ़ाएं।

शमीं के पत्ते चढ़ाते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें, अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च। दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम।।

पुरानी कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में ‘चित्रभानु’ नाम का एक शिकारी था। जीव हत्या करके वह अपने परिवार का पालन करता था। एक साहूकार का कर्ज़दार था। लेकिन साहूकार का कर्ज वह समय पर ना चुका सका। साहूकार ने क्रोधित होकर शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग देखो उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यान मग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। उसने शिवरात्रि व्रत कथा भी सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की शिकारी अगले दिन सारा कल लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।

शिकारी अपनी दिनचर्या पर जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिन भर बंदी गृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह है दूर तक निकल गया। शाम होते ही अंधेरा हो गया तो उसने विचार किया कि आज की रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात बितने का इंतजार करने लगा।

इस वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। जो बेल पत्रों से ढका हुआ था। मचान बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिन भर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेल पत्र भी चढ़ गई। रात्रि का एक पहर बीत जाने के बाद एक गर्भवती हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी जैसे ही उसे मारने के लिए तीर खींचने लगा, हिरणी बोली,” मैं गर्भवती हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करेंगे जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी तब मार लेना।” शिकारी ने उसे मारने का इरादा बदल दिया और हिरणी जंगलों की झाड़ियों में लुप्त होगी।

कुछ देर बाद एक और हिरणी उसी रास्ते से निकली। हिरणी को देखकर शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा। उसने धनुष पर बाण चढ़ाया तब उसे देख कर हिरणी ने विनम्रता पूर्ण निवेदन किया,” हे शिकारी मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। अब मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी” शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

रात्रि के तीसरे पहर में एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए है स्वर्णिम अवसर था उसने धनुष पर तीर चढ़ाने के लिए देर नहीं की । वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली,” हे शिकारी में इन बच्चों को उनके पिता के हवाले करके लौट जाऊंगी , इस समय मुझे मत मारो।शिकारी हंसा और बोला सामने आए शिकार को छोड़ दूं मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूं। इससे पहले में दो बार शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूखे प्यासे होंगे उत्तर में हिरनी ने कहा,” जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है ठीक वैसे ही मुझे भी है। शिकारी मेरा विश्वास करो मैं इन्हें इनके पिता से मिलाकर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। शिकारी को तीसरी हिरनी का दीन स्वर सुनकर उस पर दया आ गई और उसे भी जाने दिया।

शिकार के अभाव में भूख से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल वृक्ष पर बैठा बेल पत्र तोड़कर नीचे फेंकने लगा। प्रभात के समय में एक मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोचा कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी को देखकर हिरण विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों को तथा उनके छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब मत करो ताकि मुझे उनके वियोग में जीकर दुख ना सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुम्हें उन्हें जीवन दान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।

थोड़ी देर बाद वह फिर अपने पूरे परिवार के साथ शिकारी के सामने प्रस्तुत हो गया ताकि उनका शिकार कर सके। ऐसी सत्यता सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भाव को देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने उस हिरण को उसके परिवार के साथ जीवन दान दे दिया।

शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो उसे शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिव लोक ले गए। शिव जी की कृपा से वह अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु बने। अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

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