अभियुक्त पीड़िता से भारत मैट्रीमोनी ऑनलाइन वेब पोर्टल पर मिला था। जिसके बाद उसने महिला से दोस्ती कर शादी का वादा करते हुए रेप किया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए महिला से शादी करने के बाद आरोपी को बरी कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अभियुक्त से बात की और वकील से उसकी पहचान भी कराई और शादी का सर्टिफिकेट भी देखा। रेप का आरोपी महिला से ऑनलाइन पोर्टल भारत मैट्रीमोनी पर मिला था। जिसके बाद उसने महिला से दोस्ती कर शादी करने का वादा किया था। वह महिला के साथ कई दिन तक रहा और बाद में शादी से मुकर गया था। पीड़िता ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 , 417 और 420 के तहत पुलिस थाने में FIR दर्ज कराई थी।
तेलंगाना हाई कोर्ट में आरोपी ने अभियोजन रद्द करने के लिए धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी लेकिंन हाई कोर्ट ने केस खत्म करने से इंकार कर दिया था। आरोपी ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या है क़ानूनी प्रक्रिया ?
शादी करने के बाद रेप के आरोपों को रद्द करने के लिए बहुत जटिल प्रक्रिया है। भारतीय संविधान के अनुसार, रेप का आरोप बहुत गंभीर और गैरजमानती अपराधों की श्रेणी में आता है। कोर्ट में रेप का आरोप सिद्ध होने के बाद सात साल की सजा का प्रावधान है। धारा 320 के तहत ऐसे मामलों आरोप निरस्त नहीं किए जा सकते। रेप के मामलों में कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान है। समझौता या मुआवजे में भी इन अपराधों को शामिल नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट को भी यह अधिकार नहीं है कि समझौता होने के बाद भी ऐसे अपराधों को निरस्त कर सके। यह अधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट को ही है। सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 के तहत कोई भी आदेश दे सकता है।