सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि पॉक्सो का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है। ऐसी संकीर्ण व्याख्या बहुत हानिकारक होगी। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। इस मामले में एक आरोपी को 3 साल की सजा सुनाई गई है।
बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराध के लिए स्किन टु स्किन कांटेक्ट जरूरी नहीं वाले मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत का मानना है कि स्किन टु स्किन टच किए बिना बच्चों के नाजुक अंगों को छूना POCSO को कानून के तहत यौन शोषण है। यौन इच्छा से बच्चों के यौन अंगों को छूना पॉक्सो के तहत अपराध है। पॉक्सो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अहम फैसला सुनाया है। पॉक्सो का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण से बचाना है, संकीर्ण व्याख्या हानिकारक होगी, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। इस मामले में आरोपी को 3 साल की सजा सुना दी है।
सुप्रीम कोर्ट का पॉक्सो एक्ट पर अहम फैसला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने त्वचा से त्वचा को छूना, पोक्सो एक्ट लागू होता है या नहीं इस मामले पर फैसला सुनाया है। न्यायाधीश उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस त्रिवेदी की बेंच ने यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 30 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित विवादास्पद फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल द्वारा दायर की गई याचिका सहित इस याचिका का समर्थन करते हुए महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग सहित कई अन्य पक्षकारों की तरफ से याचिकाओं पर सुनवाई की गई थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरोपी को किया था बरी
गौरतलब है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग के स्तन को स्किन टू स्किन संपर्क किए बिना, टटोलना, पॉक्सो के तहत यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता। हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यौन उत्पीड़न के आरोपी और पीड़िता के बीच स्किन टू स्किन संपर्क यौन अपराध नहीं होता है। पॉक्सो के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है। हाई कोर्ट ने यह दलील देते हुए आरोपी को बरी कर दिया था।