पीएम मोदी की डिग्री दिखाने वाले CIC के आदेश को HC ने रद्द किया

PM Modi degree: RTI कार्यकर्ता नीरज शर्मा ने एक आरटीआई आवेदन दाखिल किया था। जिसमें उन्होंने DU से 1978 में BA करने वाले छात्रों की जानकारी मांगी थी।

PM Modi की degree दिखाने वाले CIC के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट ने रद्द किया

2015 में आरटीआई एक्टिविस्ट नीरज शर्मा ने एक RTI आवेदन दाखिल किया था। जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय से 1978 में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड की जानकारी मांगी थी। जिसमें छात्र का रोल नंबर,छात्र का नाम, पिता का नाम और प्राप्त अंक शामिल थे। यह अनुरोध पीएम मोदी की डिग्री की सत्यता की जांच के लिए किया गया था। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2012 के चुनावी हलफनामे में DU से 1978 में BA ( राजनीति विज्ञान ) में उत्तीर्ण करने का उल्लेख किया था।

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने नीरज शर्मा के इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। DU ने निजी जानकारी को सार्वजनिक हित में जुडी न होने का तर्क देते हुए आरटीआई कार्यकर्ता की मांग को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद 2016 दिल्ली के तत्कालीन सीएम अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप से पीएम मोदी की डिग्री पर सवाल उठाए थे। जिसके बाद यह विवाद बढ़ा।

केंद्रीय सुचना आयोग (CIC) का मूल आदेश

नीरज शर्मा ने DU के इंकार के खिलाफ CIC में अपील की। 21 दिसंबर 2016 को, केंद्रीय सुचना आयोग ने सुचना आयुक्त प्रोफेसर एम. अचार्युलु ने डीयू को निर्देश दिया कि वह 1978 में BA की परीक्षा के रजिस्टर की जांच की अनुमति दे और संबंधित पृष्ठों की प्रमाणित प्रतियां प्रदान करे। CIC ने DU के तर्क को खारिज कर दिया कि यह जानकारी तीसरे पक्ष की निजी जानकारी है। और कहा कि इसमें ना तो योग्यता और न ही वैधता है। CIC का मानना था कि यह जानकारी RTI अधिनियम के तहत प्रकट करने योग्य है।

नीरज शर्मा की अपील पर दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यवाही

CIC के आदेश के खिलाफ DU ने 2017 में DHC में अपील दाखिल की थी। 24 जनवरी 2017 को दिल्ली हाई कोर्ट ने नीरज शर्मा को नोटिस जारी करते हुए CIC के आदेश पर रोक लगा दी थी। यह मामला लंबे समय तक लंबित रहा। जस्टिस सचिन दत्ता ने फरवरी 2025 के फैसले को सुरक्षित रखा। आज 25 अगस्त 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट ने CIC के आदेश को रद्द करने का फैसला सुनाया।

मामले पर दोनों पक्षों के तर्क

दिल्ली यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया। उन्होंने तर्क दिया कि यह जानकारी “जिम्मेदार व्यक्ति की क्षमता” (Fiduciary) में रखी गई है और आटीआई अधिनियम के तहत छूट प्राप्त है। सभी छात्रों की निजी जानकारी का खुलासा देशभर के विश्वविद्यालों के लिए “दूरगामी प्रतिकूल परिणाम” पैदा कर सकता है, जहां करोड़ों छात्रों के रिकॉर्ड हैं।

PM Modi degree: SG तुषार मेहता ने कहा कि RTI अधिनियम जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए नहीं है, बल्कि अधिनियम की धारा 6 के तहत विशिष्ट उद्देश्य के लिए है। उन्होंने पुट्टास्वामी के मामले का हवाला देते हुए गोपनीयता के अधिकार ( अनुच्छेद 21) पर जोर दिया। कहा-डिग्री जैसे व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक कर्त्यव से असंबंधित है और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकती।

RTI कार्यकर्ता नीरज शर्मा का तर्क

वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने आरटीआई कार्यकर्ता नीरज शर्मा का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के “जिम्मेदार व्यक्ति की क्षमता” (Fiduciary) वाले दावे का विरोध करते हुए कहा कि डिग्री और अंक की जानकारी बाहरी नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि डिग्री संबंधित जानकारी सार्वजनिक डोमेन में है। यह सामान्य व्यक्ति और सेलेब्रिटी, दोनों के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। सुचना अधिकारी को यह मूल्यांकन करना चाहिए कि खुलासा सार्वजनिक हित में है या हानि पहुंचाता है। (PM Modi degree)

पीएम मोदी की डिग्री पर हाई कोर्ट का तर्क और अंतिम फैसला 

दिल्ली हाई कोर्ट ने CIC के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने गोपनीयता के अधिकार और आरटीआई के दुरूपयोग पर जोर दिया। कोर्ट न कहा कि ऐसी जानकारी *PM Modi degree) का खुलासा खासकर ऐसे समय में अनुचित है, जब यह राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित हो। जस्टिस सचिन दत्ता ने डीयू की अपील को मंजूर किया। जिसमें 1978 के स्नातक रिकॉर्ड दिखाने की बाध्यता नहीं रही।

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दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री  (PM Modi degree) वाले लंबे समय से चल रहे विवाद को यहीं समाप्त करता है। एचसी के इस फैसले ने दिल्ली यूनिवर्सिटी को राहत प्रदान की है। हालांकि, यदि कोई और अपील होती है तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी जा सकता है।

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