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कोरोनावायरस के कारण अनाथ हुए बच्चों से कल्याणकारी योजनाएं देने के लिए दस्तावेज मांगना अनुचित होगा: दिल्ली हाई कोर्ट

कोरोनावायरस के कारण अनाथ हुए बच्चों से कल्याणकारी योजनाएं देने के लिए दस्तावेज मांगना अनुचित होगा: दिल्ली हाई कोर्ट

फोटोः दिल्ली हाई कोर्ट

सोमवार के दिन दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोरोनावायरस महामारी के कारण अपने माता-पिता में से किसी एक या दोनों को खोने वाले बच्चे से दिल्ली सरकार द्वारा शुरू की गई तरह-तरह की कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए दस्तावेज मांगना अनुचित होगा।

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह ने ऐसे आवेदनों की जांच प्रक्रिया के संबंध में मुद्दों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को किशोर न्याय अधिनियम के तहत का कल्याणकारी योजनाओं से निपटने की प्रक्रिया के बारे में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

जस्टिस सांघी की पीठ ने यह कहा कि वह उम्मीद करती है कि मुख्य सचिव महिला एवं बाल विभाग और समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव सहित जरूरी हितधारकों के साथ मीटिंग करने के बाद उक्त मुद्दों को समझाएंगे।

अदालत ने कहा

“जीएनसीटीडी में ऐसी कई प्रक्रिया में शामिल होने चाहिए जो एक समय में सरल और आसानी से जारी हो सके। यह सुनिश्चित करते हुए कि लाभ का उपयोग अयोग्य व्यक्तियों द्वारा नहीं लिया जा रहा है।”

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हाई कोर्ट राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 स्थिति से संबंधित याचिकाओं के एक समूह पर विचार कर रहा था। अदालत ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को याचिकाओं में पक्षकार बनाने के लिए आगे बढ़ते हुए मामले को 9 सितंबर तक के लिए स्थगित करते हुए जवाब मांगा है।

अदालत ने स्पष्ट किया है कि डीएसएलएसए को लागू करने का उद्देश्य पूरे सिस्टम कोसुव्यवस्थित करने में सहायता प्राप्त करना और जरूरतमंद बच्चों को उनके दस्तावेजों को प्राप्त करने और जांच प्रक्रिया के साथ सहायता प्रदान करना है।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता प्रभ सहाय कौर ने कोर्ट को एक परिवार के बारे में अवगत कराया। जिसमें 7 बच्चे शामिल हैं। जिन्होंने इस साल अपने माता-पिता दोनों को कोरोनावायरस के कारण खो दिया है। एडवोकेट कौर ने उल्लेख किया कि बच्चे जिनमें दो बालिग है और एक बच्चा पुरुष है जबकि अन्य महिलाएं हैं ,अपनी मांगों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। और दिल्ली सरकार की कल्याणकारी योजना नीति को उनके लिए लागू नहीं किया गया है।

सीएम अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि प्रभावित बच्चों को 50000 रूपये की अनुग्रह राशि देने की योजना का कार्यांवित करने में समय लगता है। क्योंकि आवश्यक डॉक्यूमेंट की जरूरत होती है।

वकील मेहरा ने पेश किया कि संबंधित पदाधिकारी के समक्ष बच्चों के एक आधार कार्ड में दिए गए पत्र के संबंध में है।  उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार यूआईडीएआई के साथ मामले को निपटाने की पूरी कोशिश कर रही है। पूरी प्रक्रिया में समय लगता है।  जिस कल्याण योजना के तहत मुआवजा के अनुदान में और देरी हो रही है।

जस्टिस सांघी की टिप्पणी

यह समस्या हम में से किसी के साथ भी हो सकती है। हम पता बदलते रहते हैं। केवल इसलिए कि आधार कार्ड में समस्याएं हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति की कोई पहचान नहीं है।

जस्टिस सिंह की टिप्पणी

हम आपकी चिंता की सराहना करते हैं। हम सभी एक पृष्ठ पर हैं। आप कह रहे हैं कि आपकी सरकार सचेत है, हमें इसमें कोई समस्या नहीं है। रोटरी ने बहुत अच्छा काम किया है। दिन के आखिर में वह अपने अधिकार चाहते हैं। यह आपकी नीति है। इसमें इतना लंबा समय क्यों लगना चाहिए? हमारे हस्तक्षेप के बिना यह आप की ओर से आना चाहिए ।

लाइव लॉ के अनुसार कोर्ट ने आगे कहा, क्योंकि योजनाओं को बच्चों को लाभ देने के लिए तैयार किया गया है। इसलिए सरकार का दृष्टिकोण नियमित रूप से इस तरह के आवेदनों को देखने की वजह सक्रिय रूप से कार्य करने का होना चाहिए। दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने दावा किया है कि कोरोना के कारण 2020-21 में लगभग 6200 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है।  जबकि 292 बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है। इसमें यह भी कहा गया कि जब और नया डाटा एकत्रित किया जाएगा तो उक्त आंकड़े बदलने की भी संभावना है।

इस मामले की अगली सुनवाई 9 सितंबर को होगी। न्यायालय ने जीएनसीटीडी को यह सुनिश्चित करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी कर दिए थे कि वह प्रभावित बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के मद्देनजर किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रावधानों का अनुपालन करता है। यह देखा गया है कि दिल्ली सरकार ने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त तंत्र के साथ नहीं आई है और दिल्ली सरकार के विभागों में पूर्ण दिवालियापन है। न्यूज़ इनपुट: लाइव लॉ

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