Demonetization money: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी वी नागरत्ना ने शनिवार को एक समारोह में संबोधन के दौरान कहा कि अगर 98 फीसदी करंसी सिस्टम में वापस आ गई है तो फिर कालेधन का क्या हुआ। नोटबंदी कालेधन को सफेद में बदलने का एक सुनियोजित तरीका था। क्योंकि 86 फीसदी मुद्रा विमुद्रित हो गई थी और 98 फीसदी मुद्रा सफेद धन बन गई।
शनिवार के दिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताने वाली पांच जजों की बेंच में अकेली जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि विमुद्रीकरण के कारण आम आदमी की परेशानी ने उन्हें हिला कर रख दिया था। NALSAR यूनिवर्सिटी में एक संबोधन के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा,” अगर 98 प्रतिशत मुद्रा भारतीय रिजर्व बैंक के पास पहुंची है तो बेहिसाब धन को बाहर निकालने में इसकी प्रभावशीलता संदिग्ध हो जाती है। ”
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा,” मुझे ख़ुशी है कि मुझे उस पीठ का हिस्सा बनने का मौका मिला। हम सभी जानते हैं कि 8 नवंबर 2016 को क्या हुआ था। 86 फीसदी मुद्रा 500 और 1000 हजार के नोट थे। मुझे लगता है कि केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। एक मजदूर की कल्पना करें जो अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने नोट बदलवाने के लिए लाइन में लगा था। 98 फीसदी मुद्रा वापस आ गई है तो इसमें काला धन कहां है ? मेरे हिसाब से यह उस समय काले धन को सफेद करने का तरीका था। बेहिसाब नकदी सिस्टम में प्रवेश कर गई। उसके बाद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की कार्यवाही में क्या हुआ ? ये हम नहीं जानते। इसलिए आम आदमी की इस दुर्दशा के कारण मुझे असहमत होना पड़ा। ”
बता दें, 2023 में न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से विमुद्रीकरण योजना की वैधता को बरकरार रखा था। उस समय जस्टिस नागरत्ना भी इस पीठ की मेंबर थीं। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अपनी असहमति जताते हुए कहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कोई स्वतंत्र विचार नहीं किया गया। पूरी कवायद को 24 घंटो के अंदर अमल में लाया गया था। लाखों सूक्ष्म, लघु उद्योगों की खत्म कर दिया गया और लाखों रुपए तबाह कर दिए गए।
यूनिवर्सिटी में अपने संबोधन के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच लगातार होने वाले क़ानूनी झगड़े पर भी टिपण्णी करते हुए कहा,” यह संविधान के तहत एक स्वस्थ प्रवृति नहीं है। राज्यपाल जो करते हैं उसे सवैंधानिक अदालतों के पास विचार के लिए लाया जाता है। हालांकि, इसे गवर्नर पद कहा जाता है, यह एक गंभीर सवैंधानिक पद है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार कार्य करना चाहिए ताकि इस प्रकार ककी मुकदमेंबाजी कम हो। राज्यपालों के लिए यह शर्मनाक है कि उन्हें कुछ करने या न करने के लिए कहा जाता है। उन्हें संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। ”
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जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा कि ऐसे राज्य बनाम राज्यपाल मुकदमें पंजाब, तेलंगाना, तमिलनाडु केरल और दिल्ली में देखे गए हैं।
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