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Election 2019: जानिए कब बनी VVPAT और कैसे होता है इस्तेमाल

भारत में पहले बैलेट पेपर फिर ईवीएम पर उठने लगे सवाल तो आया वीवीपैट सिस्टम। पर क्या आप जानते हैं वीवीपैट का कॉन्सेप्ट कहां से आया? पहली बार कब और कहां हुआ वीवीपैट वाली मशीन का इस्तेमाल।

भारत में पहले बैलेट पेपर फिर ईवीएम पर उठने लगे सवाल तो आया वीवीपैट सिस्टम। पर क्या आप जानते हैं वीवीपैट का कॉन्सेप्ट कहां से आया? पहली बार कब और कहां हुआ वीवीपैट वाली मशीन का इस्तेमाल।

पहले जहां बैलेट पेपर के जरिए मतदान होता था। अब उसकी जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ने ली है। ईवीएम लाने के पीछे मतगणना में लगने वाले समय को कम करने और बैलेट से भरी मत पेटियों के रखरखाव में होने वाले खर्च को बचाना भी था। लेकिन ईवीएम की पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे हैं। जिसे देखते हुए चुनाव आयोग वोटर वेरिएफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल का कॉन्सेप्ट लेकर आया। जिसके जरिए मतदाता को यह पता चलता है कि जिस कैंडिडेट के लिए ईवीएम में उसने बटन दबाई है, वोट उसे ही मिला है। इसके लिए ईवीएम से वीवीपैट मशीन भी जुड़ी होती है।

वीवीपैट मशीन ईवीएम के साथ कनेक्ट होती है। जब वोटर ईवीएम में किसी उम्मीदवार  के नाम और चुनाव चिन्ह के सामने का बटन दबाता है तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है। यह बताती है कि मतदाता ने जिस उम्मीदवार  को वोट किया है, वोट उसे ही मिला है। वीवीपैट मशीन डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम के तहत काम करती है।

आपने किस उम्मीदवार  को वोट किया है यह वीवीपैट मशीन से निकलने वाली पर्ची में दिखाई देता है। इस पर्ची में मतदाता को प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह और नाम उसकी ओर से चुनी गई भाषा में दिखाई देगा। यह पर्ची 7 सेकेंड तक दिखती है फिर सीलबंद बॉक्स में गिर जाती है।

वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची 7 सेकेंड के बाद मशीन में ही गिर जाती है। यह मशीन पूरी तरह से पैक और लॉक होती है। अगर कोई सोचे कि ये पर्ची उसे मिल जाएगी तो ऐसा नहीं। सिर्फ पोलिंग अधिकारी ही वीवीपैट की इस पर्ची तक पहुंच सकता है। मतगणना के दिन इन पर्चियों का मिलान इलेक्ट्रॉनिक वोटों से किया जा सकता है।

काउंटिंग के दिन वोटों की गिनती में किसी प्रकार के विवाद होने पर प्रत्याशी की मांग पर वोटों और पर्ची का मिलान किया जाता है। अब सवाल उठता है कि मिलान कैसे होता है? क्या एक-एक वोट गिना जाता है? तो जवाब आसान है। एक ईवीएम में जितने वोट पड़े हैं ये गिनती के दिन मशीन की रिजल्ट बटन दबाते ही पता चल जाता है कि किस उम्मीदवार को कितने वोट मिले हैं। इसी आधार वीवीपैट की पर्चियों की गिनती कर ली जाती है।

इससे पहले हुए चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ 1 बूथ पर पर्चियों का मिलान होता था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में 21 विपक्षी दलों ने याचिका दायर कर 50 फीसदी ईवीएम और वीवीपैट का मिलान करने की मांग की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभाओं के 5 बूथों पर ईवीएम और वीवीपैट का मिलान किया जाए।

चुनावी प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने और ईवीएम पर उठने वाले सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था। जिसके बाद भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने यह मशीन 2013 में बनाई थी। यही दोनों भारतीय कंपनियां ईवीएम भी बनाती हैं।

यह बात सन 1890 की है। अमेरिका में मतदाता को यह पता नहीं चलता था कि उसका दिया गया वोट सही कैंडिडेट को गया है या नहीं। इसी को लेकर 1897 में होरेशियो रोजर्स ने निरीक्षण किया था। जिसमें उन्होंने पाया है डायरेक्ट वोटिंग मशीन प्रणाली से मतदाता के पास कोई प्रूफ नहीं रहता था कि उसका दिया गया वोट कहां गया। साल गुजरा और अगले ही साल 1899 में जोसेफ ग्रे ने एक ऐसा मेकेनिज्म बताया जिसमें मशीन से वोटिंग के वक्त एक टिकट निकले जिसे बैलेट बॉक्स में डालने से पहले मतदाता खुद देख सके। हालांकि वोट अब भी मशीन से ही डाले जा रहे थे, लेकिन एक टिकट मिलने का साधन उन्होंने सुझाया था। वोटिंग मशीन में सुधार होते गया है और ईवीएम तक पहुंच गया। लेकिन पर्ची को लेकर लड़ाई सुधार की गुंजाइश अभी थी।

ईवीएम में होनी वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए कंप्यूटर सिक्योरिटी प्रफेशनल ब्रूस स्नायर ने 1990 के दशक में फिर से आवाज उठाई थी। उन्होंने ही वीवीपैट की डिमांड की। 1992 में अमरेकी कम्प्यूटर साइंटिस्ट रेबेका मरक्यूरी ने जोसेफ ग्रे के आइडिया को दोहराया। सन 2000 में मरक्यूरी ने ही मरक्यूरी मैथड पर पीएचडी की। इसमें उन्होंने मशीन से निकलने वाली वीवीपैट और मतदाता के बीच कांच की दीवार का आइडिया भी दिया जिससे वोटर इस पर्ची को अपने साथ न ले जा सकें।

इसका इस्तेमाल कैलिफोर्निया के सार्कमेंटो शहर में हुए चुनाव में 2002 में हो चुका था। इस वीवीपैट वाली मशीन को एवांते इंटनेशनल टेक्नोलॉजी ने बनाया था। अमेरिका में 27 राज्यों में वीवीपैट का इस्तेमाल आम चुनावों में होता है जबकि 18 राज्य इसे सिर्फ लोकल और विधानसभा चुनाव में ही अपनाते हैं। जबकि5 ऐसे राज्य हैं जो वीवीपैट को नहीं अपनाते हैं।

सबसे पहले वीवीपैट का इस्तेमाल नगालैंड के चुनाव में 2013 में हुआ था। सितंबर में हुए राज्य के नॉकसेन विधानसभा सीट के लिए वीवीपैट लगी ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था। इसी साल मिजोरम की 40 में से 10 विधानसभा सीटों पर मतदाताओं ने वीवीपैट लगी ईवीएम से अपने वोट डाले।

2014 के लोकसभा चुनाव की 543 सीटों में सिर्फ 8 सीटों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया गया। ये सीटें थीं लखनऊ, गांधीनगर, बेंगलुरू दक्षिण, चेन्नई सेंट्रल, जादवपुर, रायपुर, पटना साहिब और मिजोरम. साल 2017 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में आयोग ने 52,000 वीवीपैट का इस्तेमाल किया। जबकि गोवा के विधानसभा चुनाव की सभी सीटों पर वीवीपैट वाली ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था। 2019 लोकसभा चुनाव में हर बूथ पर ईवीएम के साथ वीवीपैट वाली मशीन लगी रहेगी। जिसमें से चुनाव आयोग 20625 ईवीएम पर लगी वीवीपैट का मिलान करेगा।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल कई देशों ने शुरू किया था। लेकिन सुरक्षा और सटीकता को लेकर इन मशीनों पर सवाल उठने की वजह से ये वापस बैलेट पेपर लौट चुके हैं। इसमें नीदरलैंड, इटली ने तो ईवीएम पर बैन लगा दिया है। जबकि जर्मनी, इंग्लैंड और फ्रांस में कभी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ है।

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