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आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा मर्डर केस में गुजरात हाई कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद दीनू भाई सोलंकी की उम्र कैद की सजा पर रोक लगाई

सितम्बर 30, 2021 | by

Gujarat High Court stays life sentence of former Bharatiya Janata Party MP Dinu Bhai Solanki in RTI activist Amit Jethwa murder case

कोर्ट ने 2009 से 2014 तक जूनागढ़ के सांसद सोलंकी को उनके चचेरे भाई शिव सोलंकी के साथ हत्या और साजिश का दोषी ठहराया था। मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अन्य आरोपियों में शैलेश पंड्या , बहादुर सिंह वढेर पंचम जी देसाई, संजय चौहान और उदाजी ठाकोर शामिल थे। मामला, गिर वन्यजीव अभयारण्य में और उसके आसपास अवैध खनन का पर्दाफाश करने के लिए एक वकील जेठवा की गोली मारकर हत्या की गई कर दी गई थी। इस केस में सोलंकी आरटीआई आवेदनों के माध्यम से शामिल था। 2010 में जेठवा ने एशियाई शेर के एकमात्र निवास गिर अभयारण्य में और उसके इर्द-गिर्द अवैध खनन के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की थी।

जनहित याचिका में दीनू सोलंकी और शिव सोलंकी को प्रतिवादी बनाया गया था। इसमें जेठवा ने अवैध खनन में  संलिप्तता दिखाने वाले कई दस्तावेज पेश किए थे। जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान 20 जुलाई 2010 को गुजरात हाईकोर्ट के बाहर जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

शुरू में अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इस केस की जांच की और दीनू सोलंकी को क्लीन चिट दे दी थी। हाईकोर्ट ने जांच से असंतुष्ट होकर 2013 में केस को केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने नवंबर 2013 में सोलंकी और अन्य छह के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। उनके खिलाफ मई 2016 में हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप तय किए गए थे। अदालत ने पहले ट्रायल के दौरान 196 गवाहों से पूछताछ की। आरोपियों द्वारा धमकी दी जाने के बाद उनमें से 105 गवाह मुकर गए यानी सीबीआई के सामने नहीं आए। अमित जेठवा के पिता भीखा भाई जेठवा ने भी फिर से सुनवाई की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।  हाईकोर्ट ने 2017 में एक नए ट्रायल का आदेश दिया।

गुजरात हाई कोर्ट ने गुरुवार के दिन पूर्व भारतीय जनता पार्टी सांसद दीनू बोघा सोलंकी की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया है। सोलंकी को 2019 में आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के लिए 2019 में एक विशेष सीबीआई अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था। जब कार्यकर्ता ने गिर वन क्षेत्र में अवैध खनन गतिविधियों को उजागर करने की कोशिश की थी।

नागमूर्ति प्रवेश उपाध्याय और जस्टिस एस सी जोशी की पीठ ने उनकी सजा को निलंबित करते हुए। उनको सशर्त  जमानत देते हुए कहा कि सीबीआई अदालत का फैसला धारणाओं और अनुमानों पर आधारित था और फैसला पहली नजर में गलत था।

अदालत ने पाया कि मामला परिस्थिति जन्य साक्ष्य पर आधारित था और शरद वर्दीचंद शारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य 1984 एआईआर 1622 के मामले का उल्लेख किया गया और कहा कि अपराध के आरोपी को दोषी साबित होना चाहिए।

अदालत ने यह देखा कि शुरू में आवेदक को राज्य पुलिस अधिकारीयों या सीआईडी द्वारा आरोपी के रूप में नामित नहीं किया था। हालांकि जब मामला साल 2013 में सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया था। सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि व्यक्ति आवेदक द्वारा नियोजित व्यक्ति ने कहा कि उसने आवेदक को यह कहते हुए सुना है कि मृतक के संबंध में कुछ करने की जरूरत है। इसलिए वर्ष 2013 में सीबीआई ने मृतक आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या की साजिश रचने का आरोपी नामित किया। इन परिस्थितियों में कोर्ट ने सीबीआई के फैसले को देखते हुए मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया था और कोर्ट को इसके खिलाफ था कि कोई श्रृंखला नहीं मिली।

कोर्ट का विचार था कि आवेदक के झूठे फसाने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। नतीजतन अदालत ने उन्हें 100000 रूपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के मुचलके पर इस शर्त के साथ जमानतदेते हुए कहा कि वह अदालत की आज्ञा के बिना देश नहीं छोड़ेंगे । न्यूज़ क्रेडिट लाइव लॉ

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