शहीदी दिवस के अवसर पर जानिए शहीद भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें
मार्च 23, 2021 | by pillar
शहीद भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को लाहौर की सेंटर जेल में फांसी दी गई थी।
शहीदी दिवस 2021
भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटकाया गया था । इन तीनों देशभक्तों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगा लिया था । भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव की याद में हर साल 23 मार्च को शहीदी दिवस मनाया जाता है ।
वीर भगत सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए असेंबली में बम फेंक कर उन्हें चेतावनी दी थी । असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह भागे नहीं थे जिसकी वजह से उन्हें फांसी की सजा हो गई ।
शहीद दिवस 2021 के मौके पर शहीद भगत सिंह की जिंदगी से जुडी कई अहम बातें जो हमें कई तरह की प्रेरणा देती हैं। उनके विचार ऐसे हैं जिससे किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं ।
शहीदे-आजम भगत सिंह
अमर शहीद भगत सिंह का मानना था कि जिंदगी तो सिर्फ अपने दम पर ही जी जाती है दूसरों के दम पर तो सिर्फ अर्थी निकलती है। भगत सिंह कहा करते थे कि आमतौर पर लोग जैसे जीते हैं उसी के आदी हो जाते हैं । वह बदलाव में विश्वास नहीं रखते और महज उनका विचार आने से ही कांपने लगते हैं । ऐसे में यदि हमें कुछ करना है तो निष्क्रियता की भावना को बदलना होगा । हमें क्रांतिकारी भावना अपनानी होगी ।
क्रांतिकारी,शहीद भगत सिंह से जुड़ी कुछ खास बातें।
- 12 साल की उम्र में ही जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे भगत सिंह की सोच पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कर डाली।
- शहीद भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर 1907 को पिता किशन सिंह और माता विद्यावती के घर हुआ था।
- भगत सिंह ने भगत सिंह ने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा दिया था । जो आज भी काफी प्रसिद्ध है । वह अपने हर भाषण में और अपने लेख में इस नारे का जिक्र किया करते थे।
- वीर वीर भगत सिंह ने अपने दो साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया था ।इस कांड के बाद अंग्रेजों के दिल में भगत सिंह के खिलाफ खौफ बैठ गया था ।
- भगत सिंह को पूंजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण करने की नीति पसंद नहीं थी । 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ । अंग्रेजी हुकूमत को अपनी आवाज सुनाने और अंग्रेजों के नीतियों के प्रति अपना विरोध जताने के लिए शहीद भगत सिंह ने और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फोड़ कर अपनी बात सरकार के सामने रखी थी । हालांकि बम फेंकने के बाद दोनों चाहते तो भाग सकते थे लेकिन भारत के वीरों ने हंसते-हंसते आत्मसमर्पण कर दिया।
- उनके बारे में एक बात और काफी प्रचलित है कि जब भगत सिंह के पिता उनकी शादी करना चाहते थे तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग चले आए । अपने पीछे जो खत छोड़ा ,उसमें उन्होंने लिखा कि उन्होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के लिए समर्पित कर दिया है ।
- लाहौर असेंबली बम धमाके केस में भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी की सजा हुई । फांसी की तारीख 24 मार्च 1931 तय की गई थी। जबकि निर्धारित तारीख से 11 घंटे पहले की 23 मार्च 1931 को भारत के तीनों वीरों को शाम 7:30 बजे फांसी दे दी गई ।
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