Louis Braille: जन्म से अंधे नहीं थे नेत्रहीनों को ब्रेल लिपि देने वाल लुइ ब्रेल

Louis Braille: लुइ ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 को फ्रांस के कॉपवरय में हुआ था। वह जन्म से दृष्टिहीन नहीं थे। तीन साल की उम्र में एक हादसे के बाद लुइ की आंखों की रौशनी चली गई थी। उस घटना के बाद उन्होंने ब्रेल लिपि का अविष्कार किया।

Louis Braille: जन्म से अंधे नहीं थे नेत्रहीनों को ब्रेल लिपि देने वाल लुइ ब्रेल

नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का अविष्कार करने वाले लुइ ब्रेल का आज जन्म दिन है। फ्रांस के एक साधारण परिवार में जन्मे लुइ ब्रेल ने नेत्रहीनों को नई रौशनी देने की दिशा में अहम योगदान दिया है। महान शिक्षाविद लुइ ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 को हुआ था। उनका देहांत 6 जनवरी 1852 को हुआ था। लुइ ब्रेल ने एक ऐसी लिपि का अविष्कार किया था जो नेत्रहीनों के जीवन में नई शिक्षा की रौशनी फ़ैलाने का जरिया बनी।

लुइ बेल अंधे कैसे हुए

Louis Braille बचपन से नेत्रहीन नहीं थे। उनके बचपन में ऐसी घटना घटी कि वो नेत्रहीन हो गए। लुइ बेल तीन साल के थे। जब वह अपने पिता की दूकान में खेल रहे थे। उनके पिता की घुड़सवारी के सामान की दूकान थी। ब्रेल का परिवार इतना साधन सम्पन नहीं था कि उसको खेलने के लिए खिलोने दे सके। ऐसे में लुइ अपने पिता की दूकान के सामान को खिलोने की तरह इस्तेमाल करता था। वह दूकान के सामना के साथ ही खेलता था।

खेलते समय हुए थे अंधे

दुकान में खेलते समय ही लुइस ब्रेल की आंखों में कोई नुकीली चीज चुभ गई थी। उनकी आंखों से खून बहने लगा था। आर्थिक तंगी के कारण परिवार किसी अच्छे अस्पताल में इलाज नहीं करा पाया। लुइ की आंखों पर कपड़े की पट्टी बांध दी गई। धीर-धीरे लुइ ब्रेल की आंखों की रौशनी जाने लगी। तीन साल की उम्र में आंखों में लगी चोट के बाद आठ साल की उम्र में उनकी आंखों की रौशनी पूरी तरह से चली गई।

लुइ बेल ने हिम्मत नहीं हारी

आंखो की रौशनी जाने के बाद भी लुइस ब्रेल ने हिम्मत नहीं हारी। वह पढ़ना चाहते थे। पढ़ाई के प्रति उनके लगाव को देखते हुए घरवालों फ्रांस के मशहूर पादरी वेलेंटाइंस के पास भेज दिया। जिन्होंने लुइ की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर ब्लाइंड्स में दाखिल करा दिया। समय के साथ लुइस ब्रेल को यह महसूस होने लगा कि जिस परेशानी से वह गुजर रहे हैं , उससे बाकी नेत्रहीन भी गुजर रहे होंगे।

कैप्टन चार्ल्स की लिपि से मिली प्रेरणा

12 साल की उम्र में लुइ ब्रेल को इस बात का पता चला कि फ्रांस की सेना में तैनात कैप्टन चार्ल्स ने एक खास कूटलिपि तैयार की थी। यह लिपि ऐसी थी जिसमें लड़की पर उकेरे गए शब्दों को उँगलियों से टटोलकर पढ़ा जा सकता था। कैप्टन चार्ल्स ने यह लिपि उन सैनिकों के लिए बनाई थी जो वर्ल्ड वॉर में अंधे हो गए थे। लुइ को जैसे ही इस लिपि के बारे में पता चला तो उन्होंने पादरी वेलेंटाइंस से कहा कि वो कैप्टन चार्ल्स बार्बर से मिलना चाहते हैं।

कैप्टन चार्ल्स से मिलने के बाद लुइ ने उस कूटलिपि में कई संशोधन किए। लिपि पर उनकी शोध जारी रही। 1829 में लुइ ने छह बिंदुओं पर आधारित ब्रेल लिपि का अविष्कार किया। उन्ही के नाम पर ब्रेल लिपि नाम दिया गया। आज के दौर में ब्रेल लिपि नेत्रहीनो के लिए वरदान बनी हुई है।

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