Mount Everest का खतरनाक पहाड़, जहां लाशें बताती हैं रास्ता

Mount Everest: ये कहानी किस हॉरर मूवी की नहीं है बल्कि दुनियां के सबसे खतरनाक पहाड़ एवरेस्ट की है। यहां 300 से भी अधिक बर्फ में गढ़ी हुई लाशें हैं जो पर्वतारोहियों को रास्ता बताने का काम करती हैं।

Mount Everest पर 300 से भी ज्यादा लाशें माइलस्टोन का काम करती हैं।

Mount Everest समुद्र तल से लगभग 17-20 हजार फुट की उंचाई। हाड जमा देने वाला ठंडा तापमान। ऐसे ही हालात में 18 नवंबर को हमारे 4 सैनिक शहीद हो गए। आज हम दुनिया के सबसे खतरनाक और ठंडे पहाड़ माउंट एवरेस्ट के बारे में बताने वाले हैं। ये कहानी उस पहाड़ की है जहां आज भी भटके हुए लोगों को लाशें रास्ता बताती हैं। ये दुनिया की ऐसी जगह है जहां इंसानों की लाशें मील के पत्थर का काम करती हैं।

मरे हुए लोग कभी वापस नहीं आते

Mount Everest पर लाशें सैंकड़ों साल बाद भी खराब नहीं होती हैं। यहां का माइनस तापमान इनके लिए किसी डीप फ्रीजर का काम करता है। इस बर्फीले पहाड़ पर इंसान मरते तो हैं लेकिन उनकी लाशें कभी वापिस नहीं आती। इन लाशों को माउंट एवरेस्ट से लाना बहुत महंगा और जोखिम भरा है। अगर रेस्क्यू टीम इन लाशों को लाने की कोशिश भी करे तो भी बहुत मुश्किल है। लाशों को वहां से लाने का मतलब खुद की बलि देने के बराबर है। इसलिए एवरेस्ट की चोटी  पर मरे हुए लोगों को कभी वापिस लाने की कोशिश ही नहीं की गई। जानिए क्यों मनाया जाता है ओज़ोन दिवस ? पृथ्वी पर जीने के लिए क्यों जरूरी है ओज़ोन परत ?

Mount Everest पर मुर्दे दिखाते हैं रास्ता

Mount Everest दुनिया का सबसे ऊंचा ,ठंडा और खतरनाक पहाड़ है। हर साल इस पहाड़ पर 300 से 400 के आसपास पर्वतारोही जाते हैं। जिनमें से कुछ अपने मिशन में कामयाब होते हैं और कुछ वहीँ बर्फ में दफन हो जाते हैं। मगर इस पहाड़ पर जो लोग मरते हैं वो मरकर भी अपनी गलतियों से दूसरों को सबक देते हैं। कभी-कभी ये लाशें यहां आने वाले पर्वतारोहियों के लिए Google Map का भी काम करती हैं। यहां पहुंचने वाले पर्वतारोही इन लाशों को देखकर ही अंदाजा लगा लेते हैं कि इनसे आगे जाना खतरनाक है। इस तरह ये लाशें यहां आने वाले लोगों को रास्ता बताती हैं।

Mount Everest पर कितनी लाशें हैं?

बर्फीले पहाड़ माउंट एवरेस्ट पर इस समय 300 से भी ज्यादा लाशें गढ़ी हुई हैं। जिनको देखकर यहां आने वाले पर्वतारोही अपनी आगे की मंज़िल तय करते हैं। आंकड़ों के अनुसार यहां आने वाले ज्यादातर पर्वतारोहियों को जान पैर फिसलने के कारण गई है। इनमें से कुछ की जान ऑक्सीजन की कमी के कारण दम घुटने और और बर्फ की वजह से दिमाग सन्न होने के कारण गई है।

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