What is zero FIR ?: सीआरपीसी के सेक्शन 154 के अनुसार,घटना किसी क्षेत्र से जुडी न होने पर पुलिस थाने को शिकायत दर्ज करनी होगी। ऐसे मामले में पुलिस निरीक्षक या उससे ऊपर वाले रैंक का अधिकारी एक फारवर्डिंग लेटर जारी करता है, जिसे सिपाही संबंधित थाने में लेकर जाता है।
ज़ीरो एफआईआर का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि पीड़ित को इंसाफ के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े। यह प्रावधान पीड़ित की तुरंत मदद करने के लिए शुरू किया गया है। ताकि शिकायत दर्ज होने के तुरंत बाद कार्रवाई शुरू हो सके।
जब कोई भी पुलिस थाना अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर हुई घटना के बारे में एफआईआर दर्ज करता है, उसे ज़ीरो एफआईआर कहते हैं। अपराध होने की मामले में पुलिस यह कह कर इंकार नही कर सकती कि घटनास्थल उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। पुलिस को शिकायत दर्ज करनी ही होती है। अपराध की स्थिति में पुलिस को ज़ीरो एफआईआर दर्ज करनी होती है। बाद में इसे जांच के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर कर दिया जाता है। ताकि अच्छे से जांच पड़ताल की जा सके।
कैसे हुई शुरुआत ?
महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी पर तेज कार्रवाई और उसे सजा दी जा सके, ऐसे प्रावधान के लिए कानून में संशोधन किया गया। इसकी शुरुआत साल 2012 में हुई। उस समय निर्भय गैंगरेप के मामले में जस्टिस वर्मा समिति ने जीरो एफआईआर की सिफारिश की थी। उसके बाद ही ज़ीरो एफआईआर को लागु किया गया। इस प्रावधान के शुरू होने पहले कई ऐसे मामले देखे गए जिनमें पुलिस, पीड़ित को यह कहकर कि घटना उनके अधिकार क्षेत्र की नहीं है, संबंधित थाने में जाने की सलाह देती थी। नतीजा पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता था और अपराधी बच निकलता था। निर्भय गैंगरेप के बाद दोबारा ऐसी घटना न हो, इस लिए ज़ीरो एफआईआर के प्रावधान को लागू किया गया।
CrPC के सेक्शन 154 के अनुसार,घटना किसी क्षेत्र से जुडी न होने पर पुलिस थाने को शिकायत दर्ज करनी होगी। ऐसे मामले में पुलिस इंस्पेक्टर या उससे ऊपर वाले रैंक का अधिकारी एक फारवर्डिंग लेटर जारी करता है, जिसे पुलिस का सिपाही संबंधित थाने में लेकर जाता है।
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