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भारतीय सेना का ऐसा अमर जवान जो शहीद होने के बाद भी रहता है ड्यूटी पर,मिलती है छुट्टी और प्रमोशन

नवम्बर 17, 2019 | by

Such an immortal soldier of the Indian Army who remains on duty even after martyrdom, gets leave and promotion

भारतीय सेना की 4 गढ़वाल रायफ़ल्स का अमर जवान जसवंत सिंह एक ऐसा सैनिक है जो शहीद होने के बाद भी ड्यूटी पर रहता है। माना जाता है कि उनकी आत्मा अब भी बार्डर पर देश की रक्षा करती है।

भारतीय सेना का एक सैनिक ऐसा भी है जो अब इस दुनिया में नहीं होने के बाद भी इस दुनिया में है और 1962 से लेकर आज तक देश की रक्षा कर रहा है। उनको प्रमोशन भी मिलता है ,छुट्टी भी मिलती है ,सुबह नाश्ता और शाम को खाना भी दिया जाता है। इतना सब जानने के बाद आपके दिमाग में ज़रूर सवाल पैदा हो रहे होंगे कि ऐसा क्या खास है और माजरा क्या है ?

जी हां, आज हम आपको बताते हैं ऐसी शख्सियत के बारे में जिसने अकेले चीन की सेना को 72 घंटे तक रोके रखा और उसके 300 से अधिक सैनिकों को मार गिराया था ,उनका नाम है शहीद जसवंत सिंह रावत। उनकी इसी बहादुरी की के कारण आज भी उनको इतना सम्मान मिलता है। चलिए अब हम शहीद जसवंत सिंह के बारे में विस्तार से बताते है।

जसवंत सिंह का जन्मस्थान

शहीद जसवंत सिंह रावत उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल जिले के रहने वाले थे। जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को हुआ था। उनके पिता का नाम गुमन सिंह रावत था। जसवंत सिंह जिस समय शहीद हुए थे उस समय वह गढ़वाल रायफ़ल्स की चौथी बटालियन में राइफलमैन  के पद पर सेवारत थे। जसवंत सिंह रावत ने 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरांग की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी।

भारत और चीन के बीच 1962 का युद्ध

भारत और चीन के बीच जब 1962 की लड़ाई अपने अंतिम चरण में थी। समुद्र तल से 14000 फ़िट की ऊंचाई पर लगभग 1000 किलोमीटर के एरिया में फैला हुआ अरुणाचल प्रदेश भारत और चीन के बीच युद्ध का मैदान बना हुआ था। हाड़ कंकंपा देने वाली सर्दी और दुर्गम रास्ते ,जहां आम आदमी जाने की कल्पना करने मात्र से भी थर्रा जाता है। उस इलाके में भारतीय सेना चीन के साथ लड़ रही थी।

चीनी सेना भारत की सीमा पर कब्ज़ा करते हुए हिमालय की तरफ आगे बढ़ रही थी। चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश के तवांग से भी आगे बढ़ चुके थे। भारतीय सेना भी चीनी सेना का डटकर मुकाबला कर रही थी। चीन की सेना से भारत की गढ़वाल रायफ़ल्स मुकाबला कर कर रही थी। इसी गढ़वाल रायफ़ल्स में जसवंत सिंह रावत भी तैनात थे।

इसी लड़ाई के बीच संसाधनों और राशन का हवाला देते हुए गढ़वाल रायफ़ल्स की 4 बटालियन को वापिस बुलाने का आदेश दिया गया। आदेश के बाद बटालियन वापिस आ गई लेकिन जसवंत सिंह ने वहीँ रहने का फैसला किया और चीनी सेना से अकेले मुकाबला करने की ठानी।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग

अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय लोगों के अनुसार, जसवंत सिंह ने मोनपा जनजाति की दो स्थानीय लड़कियों सेला और नूरा की मदद से लड़ाई का ग्राउंड बनाया। तीनों ने मिलकर मशीनगन और टैंक फिट किए। जसवंत सिंह ने ऐसा चीन की सेना को यह दिखाने के लिए किया ताकि उनको लगे कि यहां भारतीय सेना बड़ी संख्या में मौजूद है। टैंक और मशीनगनों की तैनाती से चीन की सेना भी धोखा खा गई।

जसवंत सिंह ,नूरा और सेला तीनों अलग-अलग जगह से दुश्मनों पर हमला करते रहे। जसवंत नूरा और सेला द्वारा की गई फ़ायरिंग में चीन की सेना के बहुत सारे सैनिक मारे गए। इन तीनों द्वारा सुनियोजित तरीके से चीन की सेना पर किए गए हमले से चीन की सेना में घबराहट पैदा हो थी। इसी तरह जसवंत सिंह दोनों लड़कियों के साथ चीन की सेना को 72 घंटे तक चकमा देते रहे। लेकिन इसी बीच चीन की सेना ने जसवंत सिंह रावत को राशन की आपूर्ति करने वाले शख्स को पकड़ लिया।

उसने चीन की सेना को जसवंत सिंह और दोनों लड़कियों के बारे में सच बता दिया। जिसके बाद चीनी सेना ने 17 नवंबर 1962 को चारों तरफ से घेर कर जसवंत सिंह पर हमला किया। इस हमले में सेला मारी गई और नूरा को चीन की सेना ने बंदी बना लिया। जब जसवंत सिंह को चीनी सेना द्वारा पकड़े जाने का एहसास हुआ तो उन्होंने खुद को युद्धबंदी बनने से पहले ही खुद को गोली मार ली। हालांकि , कुछ कहानियों के अनुसार जसवंत सिंह रावत को चीनी सेना ने पकड़कर फांसी दी थी।

जसवंतगढ़

जिस जगह पर जसवंत सिंह ने अपनी आखिरी लड़ाई लड़ी थी उसका नाम आज जसवंतगढ़ है। उनकी याद में वहां के मंदिर बनाया हुआ है। इस मंदिर में उनसे जुडी चीजों को आज भी सुरक्षित रखा हुआ है। आज भी पांच सैनिक इस मंदिर की देखरेख के लिए तैनात हैं। तैनात पांचों सैनिक उनका बिस्तर लगाते है ,जूते पोलिश करते है और वर्दी प्रेस करते हैं।

जसवंत सिंह रावत को शहीद होने के बाद भी ,प्रमोशन और छुट्टी मिलती है। आज जसवंत सिंह का सेना में मेजर जनरल का रैंक है। आज भी जसवंत सिंह के घर वाले उनकी छुट्टी के लिए आवेदन करते हैं। जिसके बाद उनकी फोटो को पुरे सैन्य सम्मान के साथ ट्रेन में सीट रिजर्व कर घर पर छुट्टी भेजा जाता है। खास बात ये है कि आज भी उनके नाम के आगे शहीद नहीं लगाया जाता है। सेना की तरफ से जसवंत सिंह को महावीर चक्र से नवाजा गया है।

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