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गुजरात के बाद राजस्थान और मध्य प्रदेश में बढ़ रहे हैं चांदीपुरा वायरस के मामले, अब तक 16 की मौत

जनवरी 10, 2025 | by pillar

After Gujarat, Chandipura virus cases are increasing in Rajasthan and Madhya Pradesh

Chandipura virus 9 महीने से 14 साल तक के बच्चों में फैलता है। इस जानलेवा वायरस का पहला मामला 1965 में महाराष्ट्र के चांदीपुरा गांव में पाया गया था। घाकत वायरस के कारण अकेले गुजरात में 16 बच्चों की जान जा चुकी है।

गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में चांदीपुरा वायरस (Chandipura virus) और Acute Encephalitis Syndrome के मामले बढ़ रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार के दिन तीनों राज्यों में बढ़ रहे चांदीपुरा वायरस के मामलों को लेकर विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस घातक वायरस की समीक्षा की।

चांदीपुरा वायरस के कुल मामले

जून 2024 से जुलाई 2024 तक देश के तीन राज्यों में चांदीपुरा वायरस के कुल 78 मामले सामने आये हैं। जिनमें से 75 मामले गुजरात के कई राज्यों में सामने आए हैं। राजस्थान में दो मामले और मध्य प्रदेश में एक मामला सामने आया है। गुजरात में चांदीपुरा वायरस के कारण 16 बच्चों की मौत हो गई है।

कैसे फैलता है चांदीपुरा वायरस ?

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार,पिछले दो हफ्तों में गुजरात में चांदीपुरा वायरस के कारण 16 बच्चों को मौत हो गई है। यह बिमारी सैंडफ्लाई यानि रेत मक्खी के कारण फैलती है। ये मक्खियां उन कच्चे मकानों की दरारों में रहती हैं जो मिट्टी और गोबर से लिपे होते हैं। ये मक्खियां घर के नमी वाले हिस्से में फलती-फूलती हैं। सेंड फ्लाई का साइज सामान्य मक्खियों से चार गुना कम होता है।

हिम्मतनगर अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग प्रमुख डॉक्टर आशीष जैन ने बीबीसी को बताया ,” चांदीपुरा वायरस रेत मक्खी और मच्छर से फैलता है। ये मक्खियां गंदे इलाके के घरों की दीवारों में आई दरारों में रहती हैं। ”

डॉ जैन के अनुसार, ये संक्रामक रोग नहीं है। मतलब एक शख्स से दूसरे में खुद नहीं फैलता है बल्कि रेत मक्खियों और मच्छरों के काटने से फैलता है। वायरस तब फैलता है जब सेड फ्लाई किसी संक्रमित बच्चे को काटने के बाद किसी स्वस्थ बच्चे को काटती है। इस बिमारी से जान गवाने वाले बच्चों की दर 85 प्रतिशत है। यानि अगर 100 बच्चे संक्रमित होते हैं तो उनमें से केवल 15 बच्चों को ही बचाया जा सकता है।

चांदीपुरा वायरस से संक्रमित बच्चे के लक्षणों का 48 घंटे बाद पता चलता है। लक्षण- तेज बुखार आना , उलटी आना ,नींद न आना और बेहोश हो जाना प्रमुक हैं।

लाइलाज बीमारी

डॉक्टरों के अनुसार, फिलहाल इस बिमारी का कोई इलाज नहीं है। डॉक्टर केवल लक्षणों के आधार पर ही दवा देते हैं। जैसे बुखार कम करने के लिए दवाई देना और आइवी फ्ल्यूड देना शामिल हैं।

सावधानियां

घरों के नजदीक गंदे पानी को इकट्ठा न होने दें। बच्चों को धूल मिट्टी में न खेलने दें। कच्चे मकानों की दरारों को भरें। कमरें में सूर्य की रौशनी आने का प्रबंध करें। सोते समय बच्चों को मच्छरदानी का इस्तेमाल करने के लिए कहें। पूरी बाजू की शर्ट पहनें। घरों में कीटनाशक दवाओं को छिड़काव करें। लक्षण नजर आने पर बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाएँ।

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