सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में टू फिंगर टेस्ट पर रोक लगा दी थी। सर्वोच्च अदालत की रोक के आदेश के बाद भी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला सिविल अस्पताल में कुछ डॉक्टरों ने रेप पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट किया। इस मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने जांच के आदेश देते हुए डॉक्टरों पर भारी भरकम जुर्माना लगाया है।
नाबालिग रेप पीड़ित लड़की का गलत टू फिंगर टेस्ट किए जाने के मामले में हिमाचल हाई कोर्ट ने कांगड़ा के जिला अस्पताल के कुछ डॉक्टरों पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। अदालत ने सीएम सुक्खू के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को आदेश दिया है कि पीड़िता को पांच लाख रुपए का जुर्माना दिया जाए। बाद में यह रकम टू फिंगर टेस्ट करने वाले डॉक्टरों के वेतन से काटी जाएगी। अदालत ने मामले की जांच कराकर दोषी डॉक्टरों को सजा देने का आदेश दिया है।
शिमला हाई कोर्ट के जस्टिस त्रिलोक सिंह और सत्येन वैध की बेंच ने आदेश सुनाते हुए कहा कि रेप पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाई गई है। उसकी निजता को भंग किया गया है। उसको मानसिक कष्ट सहना पड़ा। इसके अलावा टू फिंगर टेस्ट से पहले नाबालिग को डराया धमकाया भी गया है।
अदालत ने कहा कि डॉक्टरों ने जो किया है उससे लड़की की निजता भंग हुई है। उसकी पवित्रता और सम्मान को भंग किया गया है। किसी का शरीर उसके लिए मंदिर के समान होता है। इस तरह उस पर अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है।
क्या होता है टू फिंगर टेस्ट ?
सुप्रीम कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट को अवैज्ञानिक और गलत बताया था। अदालत ने कहा था कि इस टेस्ट के जरिए महिलाओं को बुरी तरह से प्रताड़ित किया जाता है। झारखंड सरकार की याचिका पर भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली के खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया था।
टू फिंगर टेस्ट में पीड़िता की योनि में दो उंगलियां डालकर यह पता लगाने की कोशिश कि जाती है कि उसके साथ सेक्स किया गया है या नहीं। इस टेस्ट में योनि के अंदर की झिल्ली जांचा जाता है। उंगलियां डालकर यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि हाइमन फ़टी हुई है या नहीं। हालांकि, हाइमन कई अन्य वजहों से फट जाती है। जिसमें एथेलेटिक्स, साइक्लिंग, भागदौड़ सहित कई कारण शामिल हैं। मेडिकल साइंस में भी यह बात स्वीकार की गई है कि झिल्ली खेलकूद और चोट लगने के कारण भी फट सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्भय रेप केस के बाद साल 2013 में टू फिंगर टेस्ट पर रोक लगा दी थी।