वसीयत एक वैधानिक दस्तावेज होता है। जो किसी संपत्ति के मालिक उत्तराधिकारी तय करता है। उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में वसीयत संबंधित योग्यताओं का वर्णन किया गया है।
चल-अचल संपत्ति की वसीयत
वसीयत दोनों तरह की संपत्तियों की की जा सकती है। चल संपत्ति, वह होती है जो एक जगह से दूसरी जगह जा या ले जाइ जा सकती है। जैसे,वाहन और पशु। अचल संपत्ति,में जमीन मकान दुकान आदि शामिल होते हैं। जो एक ही जगह रहते हैं।
वसीयतकर्ता
इंडियन सक्सेशन एक्ट 1925 में वसीयत संबंधी योग्यताओं का उल्लेख किया गया है। जिसके अनुसार निम्न परिस्थितियों में आदमी या और योग्य होता हैं।
- उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 59 में बताया गया है कि कोई भी स्वस्थ और वयस्क आदमी अपने द्वारा अर्जित की गई संपत्ति की वसीयत कर सकता है।
- व्यकित केवल उसी संपत्ति की वसीयत कर सकता है ,जो उसने खुद अर्जित की हो।
- कोई भी अपनी पैतृक संपत्ति की वसीयत नहीं कर सकता।
- उत्तराधिकार मिलने के बाद ही ऐसी प्रॉपर्टी की वसीयत की जा सकती है।
- अगर को व्यक्ति पागल है और उसे पागलपन के दौरे बार-बार आते हैं तो वह स्वस्थ होने की स्थिति में ही विल कर सकता है।
- कोई भी औरत खुद अर्जित की गई संपत्ति की वसीयत कर सकती है। वसीयत के मामले में स्त्री पुरुष का को भेदभाव नहीं है।
- वसीयतकर्ता किसी भी समय अपनी वसीयत को निरस्त कर सकता है। मतलब अपने द्वारा की गई वसीयत को वापस भी ले सकता है।
क्या पंजीकरण जरूरी है ?
अधिनियम के अनुसार संपत्ति का पंजीकरण करवाना जरूरी नहीं होता है। यह एक सादे कागज पर भी लिखी जा सकती है। वसीयत में लिखे गए शब्दों और भाषा पर कोई खास ध्यान नहीं दिए जाने का प्रावधान है। हां ,वसीयत में कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं
कानून के अनुसार रजिस्ट्रेशन करवाना कोई जरूरी नहीं है। न ही इसकी कोई बाध्यता है। लेकिन मुदमेबाजी से बचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लेना चाहिए।
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