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कृषि कानून का विरोध करना किसानों का मौलिक अधिकार है और इसे रोका नहीं जा सकता:सुप्रीम कोर्ट

किसान आदोंलन पर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कृषि कानूनों का विरोध करना किसानों का मौलिक अधिकार है और इसे रोका नहीं जा सकता।

किसान आदोंलन पर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कृषि कानूनों का विरोध करना किसानों का मौलिक अधिकार है और इसे रोका नहीं जा सकता।

देश भर में चल रहे किसान आंदोलन खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वो किसानों के प्रदर्शन करने के अधिकार में कटौती नहीं कर सकती। मामले की सुनवाई कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा ,” हमें यह देखना होगा कि किसान अपना आंदोलन भी करें और लोगों के अधिकारों का उल्लंघन भी न हो।हमें किसानों की दुर्दशा पर सहानुभूति है लेकिन आपको इसे बदलने के तरीके को बदलना होगा और आपको इसका हल निकालना होगा।”

शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार के वकील से पूछा कि क्या वो किसानों के साथ बातचीत के दौरान कृषि कानूनों को होल्ड करने के लिए तैयार हैं ? जवाब में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वो इस पर केंद्र से निर्देश लेंगे।

केंद्र सरकार के वकील ने दलील देते हुए कहा कि किसानों ने दिल्ली के रास्तों को बंद कर रखा है। जिससे, फल,सब्जियों और दूध के दाम बढ़ गए हैं। आप शहर को बंदी बनाकर अपनी मांग नहीं रख सकते। साल्वे ने कहा विरोध करना मौलिक अधिकार है लेकिन दूसरे के मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित होना चाहिए।

सीजेआई ने कहा कि प्रदर्शन का एक मकसद होता है। जिसमें बिना किसी हिंसा के अपने मकसद को प्राप्त किया जा सकता है।स्वतंत्रता के समय देश इसी बात का साक्षी रहा है।सरकार और किसानों के बीच आपसी बातचीत होनी चाहिए। विरोध प्रदर्शन को रोकना नहीं चाहिए और संपत्तियों को नुकसान नहीं होना चाहिए।

जस्टिस बोबडे ने कहा कि हम इसके लिए एक कमेटी का गठन करने के बारे में सोच रहे हैं। दोनों पक्ष बात कर सकते हैं और विरोध प्रदर्शन जारी रख सकते हैं।पैनल अपने सुझाव दे सकता है।

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