Major Somnath Sharma, Param Vir Chakra:आज पूरा भारत प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का बलिदान दिवस मना रहा है। मेजर सोमनाथ शर्मा ने 24 वर्ष की उम्र में बलिदान देकर श्रीनगर एयरपोर्ट को पाकिस्तानी कबाइली लश्कर के चंगुल से मुक्त कराया था।
प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा
आज 3 नवंबर 2025 को भारत के प्रथम परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का बलिदान दिवस है। यह दिन न केवल उनकी शहादत की याद दिलाता है, बल्कि 1947 के भारत-पाक युद्ध में कश्मीर को बचाने वाले वीर सैनिकों के अदम्य साहस का प्रतीक भी है। मेजर शर्मा ने मात्र 24 वर्ष की आयु में अपना सर्वोच्च बलिदान देकर श्रीनगर हवाई अड्डे को पाकिस्तानी कबायली लश्कर के चंगुल से मुक्त कराया था। जिससे जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा भारत का अभिन्न अंग बना रहा।
मेजर सोमनाथ शर्मा का जीवन
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के डाढ़ गांव में एक सैन्य परिवार में हुआ था। उनके पिता मेजर अमरनाथ शर्मा भारतीय सेना में डॉक्टर थे, जबकि मामा लेफ्टिनेंट किशन दत्त वासुदेव द्वितीय विश्व युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। सोमनाथ ने बचपन से ही देशभक्ति और सैन्य जीवन की प्रेरणा ग्रहण की।
Major Somnath Sharma का सेना में कमीशन
Major Somnath Sharma ने दिल्ली के सेंट एडवर्ड्स स्कूल और देहरादून के म्योर सेंट्रल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। 22 फरवरी 1942 को वे 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट (जो बाद में 4 कुमाऊं रेजिमेंट बनीं ) की 8वीं बटालियन में कमीशंड अधिकारी के रूप में शामिल हुए।
Major Somnath Sharma का पत्र
Major Somnath Sharma को 1942-45 के दौरान बर्मा (अराकान अभियान) में उनकी वीरता के लिए उन्हें उल्लेखनीय सेवा का सम्मान मिला। युद्ध के दौरान उन्होंने एक पत्र अपने माता-पिता को लिखा था। जो आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने पत्र में लिखा “मैं अपने सामने आए कर्तव्य का पालन कर रहा हूँ। यहाँ मौत का क्षणिक डर जरूर है, लेकिन जब मैं गीत गाता हूँ तो सब भूल जाता हूँ।”
भारत-पाक युद्ध और कश्मीर संकट
स्वतंत्रता के ठीक बाद, 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान समर्थित कबायली लश्कर (पठान कबाइलियों की सेना) ने जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। उनका उद्देश्य श्रीनगर हवाई अड्डे पर कब्जा करके भारतीय सेना को रोकना था। महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर को भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर पहुंची। लेकिन कबायली लश्कर बारामूला से श्रीनगर की ओर बढ़ चुका था।
Major Somnath Sharma का बलिदान
3 नवंबर 1947 को मेजर शर्मा अपनी 100 सैनिकों वाली कंपनी लेकर बदगाम गांव के ऊपरी इलाके में डट गए। सुबह 8 बजे उन्होंने हवाई अड्डे से 3 मील पश्चिम में एक पोस्ट स्थापित की। तभी 700 से अधिक कबायली हमलावरों ने तीन तरफ से घेराबंदी कर ली। दुश्मन की मोर्टार गोलाबारी से कंपनी के आधे सैनिक शहीद हो गए, और गोला-बारूद भी कम पड़ गया था।
Major Somnath Sharma का अदम्य साहस
Major Somnath Sharma का बायां हाथ छर्रों से जख्मी हो गया, फिर भी वे चिल्लाते रहे, “हम पीछे नहीं हटेंगे! दुश्मन को एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने देंगे!” वे एक हाथ से मैगजीन भरकर सैनिकों को गोलियां बांटते रहे और स्वयं स्टेन गन चलाते रहे।
मेजर शर्मा का आखिरी संदेश
ब्रिगेड मुख्यालय को उनका अंतिम वायरलेस संदेश था: “दुश्मन सिर्फ 50 गज दूर है। हम संख्या में बहुत कम हैं। भारी गोलाबारी हो रही है। मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा, लेकिन आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक लड़ूंगा। ”
इसके कुछ ही देर बाद एक मोर्टार उनके ठीक पास गिरा। जिसमें वे शहीद हो गए। लेकिन उनके नेतृत्व में बचे सैनिकों ने 6 घंटे तक दुश्मन को रोका। जिससे हवाई अड्डा सुरक्षित रहा। यह बलिदान कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से बचाने में निर्णायक साबित हुआ।
मेजर शर्मा को मरणोपरांत मिला परमवीर चक्र
मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) को 21 जून 1950 को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान Param Vir Chakra प्रदान किया गया। वे स्वतंत्र भारत के पहले परमवीर प्राप्तकर्ता थे। उनकी सिफारिश में लिखा गया, “उनकी वीरता, देशभक्ति और अग्निपरीक्षा में दृढ़ता ने सैनिकों को प्रेरित किया।”




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