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लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के हालात पर छलका कवि कुमार विश्वास का दर्द

कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा है। जिस पर कवि कुमार विश्वास का दर्द छलक उठा।

कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा है। जिस पर कवि कुमार विश्वास का दर्द छलक उठा।

कुमार विश्वास का प्रहार

कवि कुमार विश्वास ने मजदूरों की दयनीय स्थिति पर एक वीडियो शेयर करते हुए सत्ता में बैठे हुए नेताओं पर तीखा प्रहार किया है।

कवि का दर्द

ट्विटर पर शेयर किए गए वीडियो में कुमार विश्वास कहते हैं ,” शहर की रौशनी से टुटा हुआ ,छूटा हुआ। सड़क के रास्ते से गांव जा रहा है। बिना छठ ,ईद दिवाली या ब्याह कारज के ,बिलखते बच्चों को वापस बुला रहा है,गांव।

रात के तीन बज रहे हैं और दीवाना मैं अपने सुख के कवच में मौन की शर सैया पर अनसुने सिसकियों के बोझ तले रोता हुआ। जानें क्यों जागता हूं।जबकि दुनिया सोती है।

मुझको आवाज सी आती है कि मुझसे कुछ दूर ,जिसके दुर्योधन हैं सत्ता में वो भारत माता ,रेल की पटरियों पे बिखरी हुई , खून सनी रोटियां से लिपट कर जार-जार से रोती है।

वो जिनके महके पसीने को गिरवी रखकर ही तुम्हारी सोच की पगडंडी राजमार्ग बनी। लोक सड़कों पे था और लोकशाह बंगले में ? कभी तो लौटकर वो ये हिसाब मांगेंगे।

ये रोती माएं ,बिलखते हुए बच्चे ,बूढ़े। बड़ी हवेलियों ,खुशहाल मुहल्ले वालो। कटे अंगूठों की नीवों पर खड़े हस्तिनापुर। ये लोग तुमसे एक दिन जवाब मांगेंगे।”

इस तरह कवि कुमार विश्वाश ने अपने तरीके से शब्दों को आकार देते हुए सत्ता में बैठे हुए लोगों पर अपना गुस्सा जाहिर किया।

आचार्य प्रमोद का कमेंट

डॉक्टर कुमार विश्वास की इस मार्मिक रचना पर धर्म गुरु और सामाजिक कार्यकर्ता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कमेंट करते हुए लिखा ,” भूमिका तय करो कविराज …….चाणक्य बनो या चंद्रगुप्त,फैसला तो करना पड़ेगा।”

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