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पुण्यतिथि: कल्पना चावला, जिसने आसमान को छू लिया

फ़रवरी 1, 2019 | by

Death anniversary: ​​Kalpana Chawla, who touched the sky

अंतरिक्ष परी कल्पना चावला का जीवन सफर

नई दिल्लीः भारत के करनाल शहर में जन्मी कल्पना चावला का निधन आज से 16 साल पहले हुआ था। 1 फरवरी 2003 को दक्षिणी संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ था हादसा। नासा के 6 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही यान हुआ था विघटित। पृथ्वी की सतह पर पहुंचने के लिए मात्र 16 मिनट का बचा था समय।

सभी भारतीय महिलाओं के लिए कल्पना चावला आज भी के प्रेरणास्रोत है। जिसने अपने अदम्य साहस और मेहनत से आसमान को छू लिया।

पाकिस्तान

चावला का परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब के मुल्तान जिले है। 1947 के विभाजन के बाद परिवार हरियाणा के करनाल जिले में आ बसा। कल्पना के पिता बनारसी लाल चावला ने भारत में आकर अपने परिवार का भरण पौषण करने के लिए स्ट्रीट हॉकर का काम किया। उन्होंने गलियों में कपड़े बेचे। बाद में अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने टायर बनाने का काम शुरू किया। कल्पना की माता जी का नाम संयोगिता जोकि एक कुशल गृहणी रही।

कल्पना का जन्म,17 मार्च 1962 को हुआ। कल्पना चार भाई बहनों में सबसे छोटी थी। घर में कल्पना को मोंटो नाम से बुलाया जाता था। कल्पना चावला ऐसे समय में पढ़ाई की जब लड़कियों की पढ़ाई को अनाव्यशक माना जाता था।

मोंटो से कल्पना कैसे बनी   

जब मोंटो को टैगोर बाल निकेतन स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए ले जाया गया ,तो स्कूल प्रिंसिपल ने नाम पूछा इस पर साथ में गई हुई उनकी चाची ने तीन नाम सुझाए। ज्योतसना ,सुनैना और कल्पना। प्रिंसिपल ने मोंटो से पूछा कि उसे कौनसा नाम पसंद है?इस सवाल पर मोंटो ने कल्पना नाम को पसंद किया।

कल्पना चावला ने 12 वीं कक्षा DAV से पास की। इसके बाद कल्पना ने अपने इंजीनियरिंग के सपने को पूरा करने के लिए सोचा। लेकिन पिता बनारसी लाल चावला इस पक्ष में नहीं थे। वे चाहते थे कल्पना पढ़ाई कर डॉक्टर या टीचर जैसी कोई नौकरी करे। लेकिन माँ संयोगिता ने कल्पना के सपनों का साथ दिया और बनारसी लाल को भी अपना फैसला बदलना पड़ा। कल्पना ने फ्लाइट इंजीनियर बनने की ठानी और उसके लिए इंजीनियरिंग की डिग्री जरूरी थी।

इसके बाद कल्पना चंडीगढ़ चली गई। जहां उसने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया। विभिन्न इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के चयन के लिए कॉउंसलिंग के दौरान ,उन्होंने ऐसा करने वाली एकमात्र लड़की वैमानिकी इंजीनियरिंग को चुना।

हैरान कॉउंसलरों ने उसे वैमानिकी इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने से रोकने की पूरी कोशिश की क्योंकि उस समय इस क्षेत्र में देश में नौकरी के सीमित अवसर थे। लेकिन कल्पना अपने फैसले पर अडिग रही। जब उनसे पूछा गया कि दूसरा विकल्प क्या है ?तो उनका जवाब था कुछ भी नहीं। क्योंकि कल्पना ने उड़ान इंजीनियर बनने का फैसला लिया था जिसे धरती पर कोई बदलने वाला नहीं था।

कल्पना ने कॉलेज की पढ़ाई अपने दिल और आत्मा के साथ की। उस समय लड़कियों के लिए हॉस्टल नहीं हुआ करते थे। कल्पना एक गैराज के छोटे से कमरे में रहकर अपनी पढ़ाई करती थी। अपने खाली समय में उसने कराटे सीखे और ब्लैक बेल्ट बन गई।

कल्पना चावला को शास्त्रीय संगीत और रॉक सुनने का बेहद शौंक था। रविशंकर ,हरी प्रसाद चौरसिया और नुसरत फ़तेह अली खान के संगीत की सीडी का संग्रह किया हुआ था। कल्पना को विमानन पत्रिकाओं और पुस्तकों का संग्रह करना भी पसंद था। 1982 में कल्पना ने अपने कॉलेज में तृतीय स्थान प्राप्त किया, जोकि अपने कॉलेज से पास होने वाली पहली महिला वैमानिकी इंजीनियर बन गई।

यह उस समय की बात है जब कल्पना की मुलाकत जीन पिअर हैरिसन से हुई। जीन,उड़ान प्रशिक्षक और विमानन लेखक के साथ प्यार हो गया। 1983 में दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद कल्पना ने पति जीन से विमान उड़ाना सीखा।

कोलोराडो विश्वविधालय

1988 में कल्पना ने बोल्डर में कोलोराडो विश्वविधालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डॉक्ट्रेट पूरा किया। उसी वर्ष उसने नासा के एम्स रिसर्च सेंटर में काम करना शुरू किया।

दिसंबर 1994 में कल्पना चावला जॉनसन स्पेस सेंटर पहुंची। मार्च 1995 में उसको 15 अंतरिक्ष यात्रियों की सूचि में चुना गया। नवंबर 1996 में उसे अंतरिक्ष शटल एसटीएस 87,मिशन विशेषज्ञ और प्रमुख रोबोटिक आर्म ऑपरेटर चुना गया।

अपने पहले मिशन में कल्पना ने पृथ्वी की 252 कक्षाओं में 6.5 मिलियन मिल की यात्रा 376 घंटे और 24 मिनट में पूरी की,जोकि अंतरिक्ष में पहली भारतीय मूल की महिला बन गई। कल्पना को दोबारा फिर नासा ने कोलंबिया में उड़ान भरने के लिए मंजूरी दे दी गई।

कल्पना चावला ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों को अपने अंतिम ईमेल में लिखा था :”सपनों से सफलता तक का रास्ता मौजूद है। हो सकता है कि आपके पास ,इसे खोजने का साहस हो ,और इसका अनुशरण करने की दृढ़ता हो। “

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