How Mossad became the world’s most dangerous spy agency: मोसाद इजरायल की प्रमुख जासूसी एजेंसी है। मोसाद की स्थापना 13 दिसंबर 1949 को हुई थी।Mossad का पूरा नाम Institute for Intelligence and Special Operations है।
Mossad को स्थापना कब हुई
इजरायली खुफिया एजेंसी Mossad का पूरा नाम Institute for Intelligence and Special Operations है। जिसे Mossad LeModyin U’LeTafkidim Meyuhadim भी कहा जाता है। जिसका अर्थ ” खुफिया और विशेष मिशनों का संस्थान” है। 13 दिसंबर 1949 को स्थापित हुई जासूसी एजेंसी का काम इजरायल की सुरक्षा के लिए विभिन्न अभियानों को अंजाम देना है।
इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन ने शासन काल में मोसाद की थी। एजेंसी का मुख्य उद्देश्य अपने देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। शुरूआती दौर में एजेंसी में इजराइल की सेना के ख़ुफ़िया विभाग और आंतरिक सुरक्षा सेवा विभाग के सदस्यों को शामिल किया गया था। बाद में एजेंसी में एजेंट भर्ती करने का तरीका बदला गया।
इजराइल की Spy Agency Mossad में भर्ती का तरीका
मोसाद में एजेंटों के लिए भर्तियां निकाली जाती हैं। जिसमें इजरायल के ही नहीं बल्कि विदेशी नागरिकों को भी भर्ती किया जाता है। सबसे पहले एजेंट का इंटरव्यू होता है। उसके बाद उम्मीदवार की पूरी जन्म कुंडली खंगाली जाती है। बैकग्राउंड चेक करने के बाद एजेंट को सिलेक्ट या रिजेक्ट किया जाता है।
चयनित उम्मीदवार को कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। ट्रेनिंग के दौरान मोसाद के एजेंट को तकनीकी प्रशिक्षण, इंटेलिजेंस गेदरिंग, आत्मरक्षा और अभियान को कैसे अंजाम दिया जाता है, समेत अन्य जासूसी ट्रेनिंग दी जाती है।
Mossad के काम करने का तरीका
मोसाद अपने अभियानों को खुफिया तरीके से अंजाम देती है। इसके एजेंट मिशन को अंजाम देने से पहले अपने टारगेट की पहचान कर उसके बारे में विश्लेषण करते हैं। जरूरत पड़ने पर टारगेट एरिया की रेकी भी करते हैं। एजेंट पूरी तैयारी के बाद ही अपने ऑपरेशन को अंजाम देते हैं।
मोसाद की दो इकाइयां हैं। एक यूनिट का काम आतंकवाद को नेस्तनाबूद करना है। जबकि दूसरी यूनिट का काम गुप्त तरीके से दुश्मन को नष्ट करना होता है। पहली इकाई को मेटसाड़ा और दूसरी यूनिट को कीदोन कहा जाता है। दूसरी यूनिट का काम दुश्मन को खत्म करने के साथ साथ सबूतों को भी नष्ट करना होता है।
Mossad की कार्यप्रणाली
मोसाद की कार्यप्रणाली अत्यधिक गुप्त होती है। इसके ऑपरेशन इतनी गोपनीयता से किए जाते हैं कि इनके बारे में बहुत कम जानकारी सार्वजनिक की जाती है।
इजरायली जासूसी एजेंसी के ऑपरेशन हमेशा कवर में रहते हैं। यह एजेंसी जासूसों, एजेंटों और तकनीकी संसाधनों का उपयोग करती है ताकि इसका काम किसी को पता न चले।
यह एजेंसी एक वैश्विक नेटवर्क चलाती है। जिसमें जासूसों, जानकारी देने वालों और सहयोगियों की मदद ली जाती है। मोसाद के एजेंट अक्सर फर्जी पहचान और कवर स्टोरी का इस्तेमाल करते हैं। ताकि वे बिना शक के अपने मिशन को अंजाम दे सकें।
आधुनिक समय में, मोसाद ने साइबर खुफिया के क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज की है, जिससे यह डिजिटल जगत में भी अपने दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रखती है।
मोसाद के ऑपरेशन्स की गोपनीयता और योजना बहुत ही कड़ी होती है। कई ऑपरेशन्स का पता केवल तब चलता है जब वह सफलतापूर्वक पूरे हो चुके होते हैं। मोसाद के एजेंट फर्जी पहचान, पासपोर्ट और नागरिक पहचान का उपयोग करके अपने मिशन को अंजाम देते हैं।
जासूसी एजेंसी के सफल अभियान
जिसका एक उदाहरण, एडॉल्फ आइकमैन को अर्जेंटीना से पकड़कर इज़रायल लाना, एक अत्यंत गोपनीय और साहसी ऑपरेशन था। नाजी युद्ध अपराधी आइकमैन की गिरफ्तारी के दौरान मोसाद ने चुपचाप काम किया और बिना कोई संदेह उत्पन्न किए अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
अंतर्राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों के साथ तालमेल
मोसाद का सहयोग कई अंतर्राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों के साथ होता है, खासकर अमेरिका की CIA और ब्रिटेन की MI6 के साथ। यह अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और सहयोग मोसाद को एक बहुत ही सशक्त और खतरनाक एजेंसी बनाता है।
मोसाद केवल हथियारों और तकनीकी साधनों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह मनोवैज्ञानिक युद्ध (psychological warfare) में भी माहिर है। इसके तहत, यह दुश्मनों को असमंजस और डर में डाल देता है। उदाहरण के लिए, मोसाद ने फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों को डराने और अस्थिर करने के लिए कई मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन चलाए हैं।
जानिए, क्या होता है आतंकी स्लीपर सेल और यह कैसे करते हैं काम
मोसाद सरकार को सुरक्षा मामलों पर सलाह देने का काम भी करती है, खासकर उन मामलों में जहां बाहरी खुफिया जानकारी महत्वपूर्ण हो। खुफिया एजेंसी ने अब तक कई सफल अभियानों को अंजाम दिए हैं। मोसाद की सबसे बड़ी खासियत ये है कि एजेंसी अपने मिशन को अंजाम देने के बाद कभी भी वाहवाही लूटने के लिए जिम्मेदारी नहीं लेती।