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Rohini Acharya ने राजनीती को कहा अलविदा, लालू परिवार से भी तोडा नाता

Rohini Acharya ने राजनीती को कहा अलविदा

Rohini Acharya bids adieu to politics: RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक बाद चौंकाने वाली घोषणा की। रोहिणी ने परिवार और राजनीती छोड़ने का निर्णय लिया है।

रोहिणी आचार्य ने परिवार और राजनीती छोड़ने का लिया फैसला

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों के ठीक बाद राष्ट्रीय जनता दल (RJD ) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) ने एक चौंकाने वाली घोषणा की है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर राजनीति छोड़ने के साथ-साथ अपने  परिवार से भी नाता तोड़ने का ऐलान किया। यह खबर बिहार की राजनीति में भूचाल ला रही है, क्योंकि यह महागठबंधन की करारी हार के बाद लालू परिवार और आरजेडी में बढ़ते आंतरिक कलह का संकेत दे रही है।

Rohini Acharya की घोषणा

Rohini Acharya, जो लालू यादव की सबसे छोटी बेटी हैं और 2022 में अपने पिता को किडनी दान करने के बाद चर्चा में आई थीं ने सुबह करीब 9:12 बजे एक्स पर एक इमोशनल पोस्ट शेयर की।

यह पोस्ट अंग्रेजी में थी, जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार है: “मैं राजनीति छोड़ रही हूं और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हूं… यह वही है जो संजय यादव और रमीज ने मुझसे करने को कहा था… और मैं सारा दोष अपने ऊपर ले रही हूं। ”

रोहिणी का आरोप

रोहिणी की घोषणा के पीछे मुख्य कारण महागठबंधन की हार के बाद परिवार और पार्टी में बढ़ता दबाव बताया जा रहा है। उन्होंने सीधे तौर पर तेजस्वी यादव के करीबी सलाहकार संजय यादव और रमीज पर आरोप लगाया कि इन्होंने उन्हें राजनीति और परिवार दोनों से दूर रहने का दबाव डाला। रोहिणी ने कहा कि संजय ने उन्हें “दोष अपने ऊपर लेने” की सलाह दी, जो हार की जिम्मेदारी छिपाने का प्रयास लगता है।

लालू यादव परिवार का बयान

Rohini Acharya: लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने अब तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। तेजस्वी की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं। तेज प्रताप पहले ही परिवार से अलग होकर अपनी नई पार्टी बना चुके हैं, लेकिन वे भी चुनाव नहीं जीते।

Rohini Acharya: बिहार विधानसभा चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम 15 नवंबर 2025 को घोषित हुए, जिसमें एनडीए (एनडीए गठबंधन) ने 202 सीटें हासिल कर बहुमत प्राप्त किया। वहीं, महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस और अन्य सहयोगी) को महज 35 सीटें ही मिलीं।

आरजेडी को 22 सीटें मिलीं, जबकि 2015 और 2020 के मुकाबले यह प्रदर्शन बेहद खराब रहा। हार के बाद आरजेडी पर सीट बंटवारे में देरी, जातिगत समीकरणों का गलत आकलन और कैंपेनिंग में कमियां जैसे आरोप लगे। इससे पार्टी के अंदरूनी झगड़े सतह पर आ गए।

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