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विशेष परिस्थितियों में प्रेग्नेंट में हुई महिलाओं को 6 महीने तक का गर्भपात करवाने की मिली अनुमति

लिंग अनुपात में असमानता के कारण सरकार ने गर्भपात पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब विशेष परिस्थितियों का शिकार हुई महिलाएं 6 महीने तक के भ्रूण का गर्भपात करा सकेगी।

लिंग अनुपात में असमानता के कारण सरकार ने गर्भपात पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब विशेष परिस्थितियों का शिकार हुई महिलाएं 6 महीने तक के भ्रूण का गर्भपात करा सकेगी।

केंद्र सरकार ने गर्भपात संबंधी नए नियमों की अधिसूचना जारी की है। जिसके तहत विशेष परिस्थितियों में गर्भवती हुई महिलाओं को मेडिकल गर्भपात कराने के लिए गर्भ की समय सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह यानी 6 महीने कर दिया गया है। अब महिलाएं 6 महीने तक के भ्रूण का गर्भपात करा पाएंगी । प्रेगनेंसी का चिकित्सीय समापन नियम 2021 के अनुसार विशेष परिस्थितियों में गर्भवती हुई महिलाओं जैसे कि यौन उत्पीड़न का शिकार, रेप ,पारिवारिक विकार की शिकार, नाबालिग, दिव्यांग, ऐसी महिलाएं जिन की विवाहित स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो या विधवा हुई हो या तलाक हो गया हो अब गर्भपात करवा पाएंगी।

6 महीने तक के भ्रूण के गर्भपात की मिली अनुमति 

जारी अधिसूचना के अनुसार मानसिक रूप से बीमार महिलाएं, भ्रूण में कोई विकृतियां, बीमारी जिसके कारण जच्चा की जान को खतरा हो या फिर जन्म देने के बाद बच्चे में ऐसी मानसिक या शारीरिक विकृति की आशंका हो  जिससे वह गंभीर विकलांगता का शिकार हो सकता है। आपात स्थिति में गर्भवती महिलाओं को भी शामिल किया गया है। नई अधिसूचना मार्च में सदन में पारित गर्भ का चिकित्सीय समापन विधेयक 2021 के तहत अधिसूचित की गई थी।

डॉक्टर की सलाह के बाद होगा अबॉर्शन

इससे पहले 3 महीने तक के भ्रूण का गर्भपात कराने के लिए एक डॉक्टर की सलाह की जरूरत होती थी और 3 से 6 महीने के गर्भ का मेडिकल समापन के लिए दो डॉक्टरों की सलाह की आवश्यकता होती थी। अब नए नियमों के अनुसार जिन में ऐसी कोई विकृति, बीमारी जिसके कारण उसकी जान को खतरा हो या फिर जन्म लेने के बाद उसमें शारीरिक व मानसिक विकृति होने की आशंका हो, ऐसे में गंभीर विकलांगता का शिकार हो सकता है। इन परिस्थितियों में 6 महीने के बाद गर्भपात के संबंध में फैसला लेने के लिए राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड का गठन होगा।

मेडिकल बोर्ड का गठन

मेडिकल बोर्ड का काम होगा अगर कोई महिला उसके पास आवेदन लेकर आती है तो उसकी तरफ से उसकी रिपोर्ट की जांच करना, आवेदन मिलने के 3 दिनों के अंदर गर्भपात की अनुमति देना या नहीं देने के संबंध में फैसला सुनाना है।  बोर्ड का यह ध्यान में रखना होगा कि अगर गर्भपात कराने की अनुमति देता है तो आवेदन मिलने की 5 दिनों के भीतर पूरी प्रक्रिया सुरक्षित तरीके से पूरी की जानी चाहिए। साथ में वह महिला की उचित काउंसलिंग भी करेेगा।

पीएफआई की सीईओ पूनम मुटरेजा ने कहा कि साइंस और मेडिकल तकनीक के क्षेत्र में हुई तरक्की को ध्यान में रखते हुए गर्भपात कराने की नई समय सीमा तय की गई है। पूनम गुप्ता ने कहा,” हम केंद्र सरकार द्वारा गर्भ का चिकित्सीय समापन कानून के तहत अधसूचित नए नियमों का स्वागत करते हैं।”

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