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इलाहाबाद हाईकोर्ट- किसी को नहीं है अलग-अलग धर्म वालों की शादीशुदा जिंदगी में हस्तक्षेप करने का अधिकार

नवम्बर 19, 2021 | by

Allahabad High Court said that no one has the right to interfere in the married life of people of different religions

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बालिगों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का संवैधानिक अधिकार है। बालिगों को शादी के लिए परिवार, सरकार और समाज की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विपरीत धर्मों के वयस्क जोड़े की शादीशुदा जिंदगी, आजादी और निजता में सरकार या निजी, किसी व्यक्ति के हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने गुरुवार के दिन अंतर धार्मिक विवाह करने वाले 17 जोड़ों की याचिका पर सुनवाई करने के दौरान यह आदेश दिया है।

अदालत ने पुलिस को विपरीत धर्मों में शादीशुदा वालों के जोड़ों को जरूरत के अनुसार सुरक्षा और संरक्षण देने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने विवाह पंजीकरण अधिकारी को जिला अधिकारी के अनुमोदन का इंतजार ना कर तत्काल रजिस्ट्रेशन करने का निर्देश दिया है। यदि किसी ने धोखाधड़ी या गुमराह किया तो पक्षकारों को दीवानी या आपराधिक  कार्यवाही का अधिकार है, साथ ही केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर विचार करने के लिए भी अदालत ने कहा है।

17 जोड़ों ने दायर की थी याचिका

यह आदेश जस्टिस सुनीत कुमार ने मायरा उर्फ वैष्णवी विलास, जीनत अमान उर्फ नेहा सहित अंतर धार्मिक विवाह करने वाले 17 जोड़ों की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। अदालत ने सभी कानूनी मुद्दों पर विचार विमर्श करते हुए कहा कि समाज सामाजिक और आर्थिक बदलावों के दौर से गुजर रहा है। सख्त कानूनी व्यवस्था संविधान की भावना को निरस्त कर देगी।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर विचार करने का निर्देश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अवैध धर्म परिवर्तन कानून 2021 धर्म मानने वाले जोड़ी को शादी करने पर रोक नहीं लगाता। अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की गारंटी है।  नागरिकों को अपने परिवार की निजता की सुरक्षा का अधिकार है। कोर्ट ने साथ में यह भी कहा है कि हर व्यक्ति को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, भले ही वह अलग-अलग धर्मों से क्यों ना हो। यह मान्यताओं या विश्वास या विषय नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने मायरा और जीनत अमान सहित अंतर धार्मिक विवाह करने वाले 17 युगल जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई को स्वीकार करते हुए दिया है।

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