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यूपी में गोदी मीडिया के पत्रकारों को भी अफसर पीट रहे हैं और उनके चैनल खामोश हैं : रवीश कुमार

उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हिंसा हो रही है उसे छोड़ कर दिल्ली के पत्रकारों को लिखने का टॉपिक दिया जा रहा है कि वे मोदी मंत्रीमंडल के विस्तार को मंडल के दौर से जोड़ें। जल्दी ही मंडल से जोड़ कर कई लेख आपको मिलेंगे क्योंकि ऐसा लिखने के लिए थीम की सप्लाई हुई है।

उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हिंसा हो रही है उसे छोड़ कर दिल्ली के पत्रकारों को लिखने का टॉपिक दिया जा रहा है कि वे मोदी मंत्रीमंडल के विस्तार को मंडल के दौर से जोड़ें। जल्दी ही मंडल से जोड़ कर कई लेख आपको मिलेंगे क्योंकि ऐसा लिखने के लिए थीम की सप्लाई हुई है।

यूपी में गोदी मीडिया के पत्रकारों को भी अफ़सर पीट रहे हैं। उनके चैनल ख़ामोश हैं। इन चैनलों के पत्रकारों को गुमान रहा होगा कि उनका एंकर सरकार की जूती चाटता है तो अफ़सर थप्पड़ लप्पड़ नहीं मारेगा। अपने पत्रकार के पीटे जाने के बाद भी इन चैनलों ने उफ़्फ़ तक नहीं की। आम लोग इस डिज़ाइन को ठीक से समझें। इसके बदले हीरा मोती नहीं मिलेगा। एक ऐसी व्यवस्था मिल रही है जहां आपकी औक़ात मच्छर के समान हो गई है। आप इस राज्य उस राज्य का खेल खेलते रहें। लेकिन जो दिख रहा है उससे आपका भला हो रहा है तो कोई बात नहीं। उन पत्रकारों को क्या मिला? सरकार की जूती उठा कर भी लात जूता ही मिला। गले का हार नहीं मिला। उम्मीद है गोदी मीडिया के चैनल अपने पत्रकारों के लिए आवाज़ उठाएँगे। अफ़सरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग करेंगे।

जिस तरह से प्रशासन की मिलीभगत की ख़बरें आ रही हैं उन अफ़सरों का भी दिल अंदर से रोता होगा कि क्या कर रहे हैं। अपने हाथ से लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं। उम्मीद है उनके परिवार के लोग अपने अफ़सर पिता या पति पर गर्व करेंगे। बच्चों को बताएँगे कि देखो आज पापा संविधान का गला घोंट कर घर आ रहे हैं। सब मिलकर चाय और बर्फ़ी की पर्ची करेंगे। वैसे भी पापा या पति को कल अंबेडकर जयंती पर एक अच्छा सा भाषण भी देना है। फिर वो सबके हीरो बन जाएँगे।

क्या कह सकते हैं ? यही कि सोचिए कि क्या हो रहा है। नहीं तो जो आई टी सेल कहता है उसे ही मान लीजिए। आख़िर सत्यानाश को कौन रोक सकता है। इसे गले से लगाए रखिए।

लड़की वालों से अनुरोध है कि शादी ब्याह तय करते समय गोदी मीडिया के चैनलों के पत्रकारों से अपनी बेटी का रिश्ता तय न करे। आपका दामाद सरकार का गाएगा तो आपको अच्छा लगेगा लेकिन सरकार से लात जूता खा कर आएगा तो

अच्छा नहीं लगेगा। सैलरी भी ख़राब मिलती है। आप पत्रकार समझ कर शादी करेंगे लेकिन वो निकलेगा दलाल और उसके बाद भी जो अफ़सर चाहेगा चौराहे पर कूट देगा।

और जो अच्छे पत्रकार है उन्हें शादी सोच समझ कर करनी चाहिए। उसकी सैलरी वैसे भी नहीं बढ़नी है।वे ख़ुद से सोचें कि उनसे दलाली होगी नहीं, सैलरी बढ़ेगी नहीं तो गुज़ारा कैसे चलेगा। इस दौर में उनकी ज़रूरत नहीं रही।

बाक़ी भारत की लड़कियों से कई बार अपील कर चुका हूँ । सांप्रदायिक लड़के से शादी न करें। जिससे मानना होगा वो मानेगी नहीं तो मेरी बात याद तो आएगी।

आप सभी के मंगलमय भविष्य की कामना करता हूँ ।

नोट : ये सब कुछ एनडीटीवी इंडिया के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक रवीश कुमार ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा । हमने सिर्फ हैडलाइन के आलावा कुछ भी बदलाव नहीं किया है । इस लेख का पूर्ण रूप से क्रेडिट रवीश कुमार को जाता है ।

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